आलोचना के सिद्धान्त | Alochana Ke Siddhant
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
200
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भारतीय साहित्य-सिद्धान्तों के वस्तुपरक अध्ययन को समस्या २३
दृष्टिकोण है गवेपणा को गई। (३) काव्य-त्व-चितन का पुग, जिसमें
बनेक काव्य-संवंधी मे प्रवतित मौर प्रतिष्ठित हुए और उनके आधार
पर अनेक काव्य-सम्प्रदायों को स्थापना हुई। (४) समत्वय युग--जो
दमवी-ग्यारहदी शताब्दी से लेकर सव्रहवी शवान्दीः तक चलता है जिसमें
मम्मद द्वारा विभिन्न मतों को समन्वित करते का कार्य पडितराज जगन्नाय
तक बरावर चलता रहा। इसके वाद विघटन और विकलन का युय मौर
बंत में आधुनिक पुनद्त्यान और नवजागरण का युग, जो प्रस्तुत निबंध की
सीमा से बाहर के हैं।
भारतीय साहित्य-शास्त्र के इतिहास-ठेखन था नव-निर्माण (१) के
लिए इस प्रकार का पुग-निरूपण ऊपर से देखने में काफी आकर्षक और
साणपूर्ण लगता है। लेकिन अगर अधिक अतरंग दृष्टि से देखें तो यह कार्य
दुम्साप्य ही नहीं है, बल्कि प्राचीन भारतीय आलोचना का परिचय देने-
वाली असंख्य पुस्तकों में उसका 'चौं-चौ-का-मुरब्वा-जैसा' जो स्वरूप
अकाशितत किया जाता है, उससे अधिक व्यवस्थित परिचय विभिन्न युगो मे
बेटे ऐसे इतिहास में भी नहीं प्रकट हो सकेगा। फर्क सिर्फ इतना होगा कि
दस मुरब्ये को चार था छ पुगों के लेविलों में मंडित अलग-अलग पेटिकाओ
में बंद करके विद्याधियों को परसा जायगा। उनके पल्ले फिर भी कुछ नहीं
पहेगा। हमारे अलंकार-ग्रत्यों की विपुल राशि में व्यक्त विभिन्न मत-
मदान्तरों और साहित्य-दृष्टियो, काव्य-लक्षणों, रस, रीति गुण, गलकार,
प्वनि और भौचित्य-संबंधी विदेचनों और सूक्ष्म वर्गीकरणों का व्यवस्थित
भानं भदान करन भे प्रस्तावित इतिहास कोई मदद नदी करेगा । इसलिए
आवश्यकता इस बात की है कि इन विभिन्न साहित्य-सिद्धान्तो के प्रवतेवः
माचायो के मन्तेष्यो को सत्यनिष्ठापूर्वंक समसने के लिए पहके सो उनको
प्रवृत्यारमक आधार पर दो दर्गों मे बांटा गाय मौर फिर काव्य के दाब्द-
शिल्प (रूप) से सदंध रखनेवाले तथा उसके अथं (भाव-विचार-वस्तु
और सौन्दर्यानुभूति) से संबंध रखनेदोछे इन दोनों _ वर्गों के साहित्य-
सिद्धान्तों वा समग्र-रूप से + उनकी स्थापनाओं ,
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