गाँधी जी के साथ सात दिन | Gandhi Jee Ke Sath Sat Din

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Gandhi Jee Ke Sath Sat Din by कुलभूषण - Kulabhushanसुदर्शन - Sudarshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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$र ` | .‹ गांघीजी के साथ सात दिन वक्तं वह्‌ बडे मले ओर मेहरबान मालम होते ह । जब भने गांधीजी को नमस्कार किया तो उन्हों ने मुझे इसी तरह हाथ जोड़ कर विदा किया । मैं अपने कमरे में जाकर बारह से एक बजे तक सोया और जब « जागा, तो पसीना पसीना हो रहा. था । मैंने पानी-घर में जाकर दिनका तीसरा खान किया और खान क्या किया, कांसे के यतेन से खड खड शरीर पर पानी. डाल लिया | अभी तीन बजने में कुछ मिनट बाकी थे; कि मैंने धूप से तपी हुई रेत और कंकरियों का सौ गज़ का फ्रासिला तय किया; और गांधीजी कि कुटिया में पहुंचा । इस समय गरमी के मारे मुझे ऐसा मालूम होता था; जैसे मरे सिर के अन्दर सब कुछ सूख गया ह | जब मैं गांधीजी के कमरे में पहुंचा, उस समय वहां छः सफद खद्दर-धारी ज़मीन पर बैठे थे एक काली साडी वाली जरत पं कौ रप्सी खींच रही थी। सारे कमरे मं सजावट को सिफ॑ एक. दही चीज़ थी। और वह थी कांच में मढ़ी हुई इंसा मर्सीह की तसवीर्‌ । इसके नीचे लिखा था--“ यह हमारी शांति है)” गांधीजी एक चटाइपर बैठे थे । यह चटा उनका व्छिना मीथा। ` म पर उनके पछि एक तरल्ता था, ओर उसं तते के उपर एक पतलासा तकिया था। वे सुनहरी फ्रेम का चश्मा पहने थे और फ़ाउंटेन. - पेन से एक ख़त लिख रहे थे । इस समय वह आलुती पालती 8 ५ मारकर वेठ थे । पास द्यी हाथसे बनापु हुए एक लकड़ी कं चौखटे ` 0 ४ : क 2 1 16 ; ४ = न




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