नमस्कार - मन्त्र | Namaskar Mantra

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Namaskar Mantra  by श्री फूलचंद्र - Shri Fulchandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विराट शक्तियों के साथ तादात्म्य हो सकता है । श्रत ग्रहूं- कार शुन्यता के विस्तार के लिए प्रत्येक पद के साथ नमः शब्द का प्रयोग किया गया है नम - भ्र्थात्‌ नमस्कार समपंण श्रौर शुन्यता का ही विधायक हूँ । नमः कहते ही न मैं की भावना का उद्भव हो जाता हु । जब मस्त्र-साधक श्रहकार-शुन्य होकर श्ररिहन्त से लेकर साधुत्व तक बार-बार मानसिक यात्रा करता हूं तब उसका मन स्थिर होने लगता है उसे निर्विचारता की स्थिति जिसे समाधि भी कहते है--प्राप्त होने लगती हैं । जैसे बार- बार के घषंण से हाथ में गाठें पड जाती हैं भ्रौर गांठ वाला स्थान संज्ञा-शुन्य हो जाता है इसी प्रकार बार-बार की यात्रा से मानसिक श्रावरण घिस कर टूटने लगते हैं मन स्थिर एवं बाह्य संसार के झाकषणो श्र स्मृतियों से शुन्य होकर श्ररिहन्तत्व तक पहुंचने का एक वतुल प्रस्तुत कर लेता है । इस वतुल मे स्थित हो जाने पर वह स्थिति श्रा जाती है जब जप किया. नहीं जाता शझ्रपितु होने लगता हैं स्वत होनेवाले इसी जप को श्रजपाजाप कहा जाता है । इसी वतुल को बनाने के लिये ही श्रखण्ड जप की प्र क्रिया का ग्रारस्भ्र किया गया है। प्रखण्ड जप में सामूहिक साधना होती है वेयक्तिक साधना नहीं क्योकि नवकार मन्त्र श्ररिहन्त से लेकर साधु तक बहुवचन का प्रयोग करते हुए श्रनेक भव्य झात्मापों बारह |




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