नागरीप्रचारिणी पत्रिका (१९७०) ए. सी. ४३२९ | Nagri Pracharini Patrika (1970) Ac 4329

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हिंदी नाव्यसाहिस्य में महाराष्ट्र का इतिहास ११ था । बायजाबाई का व्याह दौलतराब ते श्रकटक संपन्न हो, इस दष्ट ठे सखारामं घाटगे ने नरसिंहराव पर व्यथं काश्यारोप लगाकर दौलत्तराव सिंधिया के हाथों उसे मृत्युदंड दिलाया, जो बाद में ग्वालियर के सरदार जिनसीवाले की सिफारिश से श्राजन्म कारावास में परिवर्तित करा दिया गया । बायजाबाई ने इस विश्वास से दौलतराव सिंधिया से ब्याइ किया कि नरविंदहराव खर्डा की लड़ाई में मौत के घाद उतारा जा चुका है । श्चेरी कोठरी में नरसिंहराव ने श्रपनी प्रेमसाधना कायम रखी । उसका प्रेम श्रव उस भक्ति में परिणत हो चुका था जो अपने प्रिय पर श्रपना सब कुछ चढ़ाने के लिये श्रघीर रहती दै । नवधा भक्ति में श्रचना नाम की एक भक्ति है जो मक्त को श्रपना 'सर्वोसम श्रपने श्रार।ध्य पर निछावर करने के लिये विवश करती है। संयोग से एक दिन बायजाबाई नरसिंदराव के तहखाने में पहुँची । अंदी के रूप में उसने नरतिंहराव के दर्शन किए श्रौर नरसिंहराव ने उसे श्रपनी बुनी हुई साड़ी मेंठ की । नाटक किसी ऐतिहासिक तथ्य के उद्घाटन के लिये नह्दीं लिखा गया है, बल्कि एक श्रनोखी कारीगरी के सोत का उदुवाटनः करने के लिये, एक श्रतीत- कालीन प्रेमकथा पर प्रकाश डालने ,के लिये लिखा गया है) इस प्रेमकष्ानी द्वारा प्रेमविषयक उसी सिद्धात को दुददराया गया है. लो 'कोणाक' मे प्राप्त होता है । वह सिद्धात यों है - 'प्रेम कमी विफल नहीं होता । प्रेम उपभोग नहीं है। वह त्याग है । प्रेयसी को लेकर जो प्रेम लौकिक दृष्टि से विफल रहा, वह श्रभिव्यक्ति की श्रौर दिशाएँ ग्रदश करता है। विशु के लौकिक तथा शिफल प्रेम ने हमें कोशाक का मंदिर दिया, नरसिंहराव के विफल प्रेम ने हमें यह श्रनोखी साढ़ी दी । कबावस्तु श्रत्यंत सीमित तथा संकेंद्रित ( कंतंट्रेटेड है । इतिहास के साथ साथ कल्पना का ,मी सहारा लिया गया है। लेकिन वह कल्पना इतिहासविसंगत नहीं है | चरित्र चित्रण एवं कथोपकथन श्रप्यंत उच्चकोटि के हैं। प्रत्येक चरित्र श्रपनी श्रमिट छाप दर्शकों पर छोड़ जाता है । श्रौर फथोपकथन स्न में काव्यात्मक बन जाता है । हृश्ययोचना में श्रवध्य कठिनाइयाँ हैं । पहले-श्रंक में दृश्य कुल तीन हैं। लेकिन स्थल दो ही,हें । एक पूना में ,सर्जेराव घाटगे का मकान श्रौर खर्डा के युद्स्थल में मराठा, शिविर का खेमा । द्वितीय झंक मे कुल दो दृश्य हैं. पूना का सर्जेराव का मकान श्रौर दूसरा खालियर के किले का तइलाना । तृतीय श्रंक




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