प्रमाण नय तत्त्वालोक | Praman Naye Tattvalok
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
181
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(७) वि [ प्रथम परिच्छेद
संशय-समारोप
साधकनाधकप्रमाणामावादनवस्थितानेककोरिसंस्पशि
ज्ञानं संशयः ॥११॥
यथा--च्यं स्थाणुर्वा पुरुषो वा ॥१२॥
श्र्ं--साधक प्रमाण श्रौर बाधके प्रमाण का श्रभाव होने
से, अनिश्चित अनेक श्रंशो को छूने वाला ज्ञान संशय कहलाता है ।
जेंसे--यह ढूंठ है या पुरुष है ?
विवेचन--यहाँ संशय-ज्ञान का स्वरूप और कारण बतलाया
गया है । साथ ही उदाहरण का भी उद्लेख कर दिया गया है ।
एक ही वस्तु से अनेक अंशो को स्पर्श करने वाला ज्ञान
संशय है, जैसे ठृंठपन और पुरुषपन दो अंश है । इस ज्ञान के समय
न टंठ को सिद्ध करने वाला कोई प्रमाण होता है, न पुरुप का निपेघ
करने वाला ही प्रमाण होता हे । ठंठ ओर पुरुप दोनों में समान रूप
से रदमे वाली उचाई मात्र मालूम होती हैं । एक को दूसरे से भिन्न
करने वाला कोइ विशेष घम मालूम नहीं होता ।
विपयेय और संशय का भेद--विपयय ज्ञान में एक अंश
का ज्ञान होता हैं, सशय मे अनेक अंशो का । विपयय में एक अंश
निश्चित होता है, संशय मे दोनों अंश अनिश्चित होते है ।
झनध्यवसाय-समारोप
किमित्यालोचनमात्रमनध्यवसायः ॥१२॥
यथा-गच्छत्तणस्पशज्ञानम् ॥१४॥
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