प्रश्नोपनिषद | Prashnopanishad
श्रेणी : धार्मिक / Religious, पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
100
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रश्नोप निषद् । ६
भावायथे ।
श्रयेति । सूय प्रातःकाल पूवदिशा से उदय होकर झाकाश में गमन
करता हुआ पश्चिमदिशा में झस्त होता ओर अपने प्रकाश से इन
दिशो के मध्य विये स्थित लोकों के चक्षु इन्द्रियों को जिस में वह
झपने शाप सूक्ष्मरूप से प्रवेश करके वेढा दै किरणों करके पदार्थे के
देखने की शक्ति देता दै, रौर अपने किरणो द्वारा उनके शरीरों में
बाह्याभ्यन्तर होकर उनका पालन पोपरा करता ह इसी प्रकार जब
सूर्य दक्षिण उत्तर अधः उप्ब दिशाओं में आर इशानादिक कोनों में
प्रवेश करता ह तव उन बिपे स्थित लोकों को पने किरणो से
आ्राच्छादित करके उन म विराजमान होता दहे, श्रोर उनकी बृद्धि को
करता दे, इसीवास्ते सव शलोकं का प्रकाशक केवल एक सूर्यौ दै बही
व्यापक ख्यात्मा हे, उसफ़े श्माश्रय सम्पूरं प्राणी र ।॥ £ ॥
मूलम् ।
स एप बैरवानरो विश्वरूपः भाणोऽग्निरुदयते तदेतदचाभ्यु-
कम् । ७ ॥
पदच्छेदः ।
सः, एषः) वैश्वानरः, विश्वरूपः, प्राणः, श्नग्निः, उदयते, तत्,
एतत् , ऋचा, झभ्युक्तम् ॥।
अन्वयः पदाथ | श्रन्यः पदाथ
ससो उद्यते-सूग्ररूप होकर उदय
छह को प्राप्त होता है
+ चन्श्रीर
प्राखः-प्रखयमभूत | तत्-ऐसाही
विश्वरूपः-बहुरूप पतत्--यद
चेश्वानरः--सवात्मा प्यान्मंत्र करके भी
छारिन:लघग्नि । शभ्युक्तम्-कहागया ह
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