चन्दनबाला | Chandanbala
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
80
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं. काशीनाथ जैन - Pt. Kashinath Jain
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दुसरा परिच्छेद ६
हीर, तौ सुश्च मी अपने साथ छेती चल | तेरे बिना में क्षण भर
भी मफेटी नदीं रह सक्ती ।”
चखुमतीका ऐसा रोना-कछपना सुनकर उस कामी सौर प्रर
सेनापतिकषो भी द्या आ गयी 1 उसने सोचा,- म्मे नीच प्रस्ताव
कर, एके तो प्राण ले टौ चका, सरके करी इसने भौ जान दै दी,
तो मुमे दो-दो ख़ियोंको हत्या करनेका पाप लगेगा ।* यदी सोच
कर उसने वसुमतो को धैय देते हए कहा, “हे राजक्कुमासे ।
जो दोनदार्दोती है, घद्द तो दोकर ही रददती है। उसे कोई
इघरसे उधर नहीं कर सकता । भावीफे घशमें राजा और
रू, दोनों ही हैं । देवका कोप किसीका पक्षपात करना नहीं
जानता । इसलिये हे राजनन्दिनी ! जो होना था, घद्द तो हो
ही चका अच तुम अपने मनमें मेरी ओरसे कुछ शी भय न माने
दो। मैं तुम्दारा रत्ती भर भी नुक़्सान नहीं कर सकता । मुभ
अपनी पिछली करनो पर मापदी पछतावा हो रहा है । अब
तुं मपनी बदन-येरोकैे समान समम्ह्ता हं । अतएव तम
अपने मनसे सारी शडद्गाएँ दूर कर दो ।”
उसकी ऐसी यातें खुन, च्ुमती को धडा धेयं हुआ । इसके
बाद घारिणीके शरीरसे सारे अलड्टार उतार कर, राको
ठिकाने लगा, चह चीर सेनापति र ।जकुमारी चसुमतीकों लिये
हुए अपने घर याया । उसका चह अलीकिक रुप भीर भरौ हु
जवानी देख, उसकी ख्रीके मनमें वड़ो शड्ा हुदै । उसने सोचा,--
“रली सुन्दर-सलीनी स्त्रीको मेरे स्वामी किस लिये घर
User Reviews
No Reviews | Add Yours...