चन्दनबाला | Chandanbala

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Chandanbala by पं. काशीनाथ जैन - Pt. Kashinath Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दुसरा परिच्छेद ६ हीर, तौ सुश्च मी अपने साथ छेती चल | तेरे बिना में क्षण भर भी मफेटी नदीं रह सक्ती ।” चखुमतीका ऐसा रोना-कछपना सुनकर उस कामी सौर प्रर सेनापतिकषो भी द्या आ गयी 1 उसने सोचा,- म्मे नीच प्रस्ताव कर, एके तो प्राण ले टौ चका, सरके करी इसने भौ जान दै दी, तो मुमे दो-दो ख़ियोंको हत्या करनेका पाप लगेगा ।* यदी सोच कर उसने वसुमतो को धैय देते हए कहा, “हे राजक्कुमासे । जो दोनदार्दोती है, घद्द तो दोकर ही रददती है। उसे कोई इघरसे उधर नहीं कर सकता । भावीफे घशमें राजा और रू, दोनों ही हैं । देवका कोप किसीका पक्षपात करना नहीं जानता । इसलिये हे राजनन्दिनी ! जो होना था, घद्द तो हो ही चका अच तुम अपने मनमें मेरी ओरसे कुछ शी भय न माने दो। मैं तुम्दारा रत्ती भर भी नुक़्सान नहीं कर सकता । मुभ अपनी पिछली करनो पर मापदी पछतावा हो रहा है । अब तुं मपनी बदन-येरोकैे समान समम्ह्ता हं । अतएव तम अपने मनसे सारी शडद्गाएँ दूर कर दो ।” उसकी ऐसी यातें खुन, च्ुमती को धडा धेयं हुआ । इसके बाद घारिणीके शरीरसे सारे अलड्टार उतार कर, राको ठिकाने लगा, चह चीर सेनापति र ।जकुमारी चसुमतीकों लिये हुए अपने घर याया । उसका चह अलीकिक रुप भीर भरौ हु जवानी देख, उसकी ख्रीके मनमें वड़ो शड्ा हुदै । उसने सोचा,-- “रली सुन्दर-सलीनी स्त्रीको मेरे स्वामी किस लिये घर




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