बुद्ध - वाणी भाग - २ | Bhudh Vaani Bhag - 2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क जागतिक चार साधन (चार स्मृत्युपस्थान) १. शुद्ध देने के लिए, शोक श्रौ दुः्खने तरे के लिए, दौर्मनस्य ( मानसिक दुःख ) का नाश करने के लिए, सन्मार्ग प्राप्त करने के लिए, श्रौर निर्वाणपदका साक्नात्‌ करने के लिए. चार स्मृति-उपस्थानोका मार्ग ही एकमात्र सच्चा मागे है । २. चार स्पृति-उपस्थान ये हैं-- (१) श्रयनी देद्का वथा रीतिसे श्रवलोकन करना; (२) वेदनाका यथार्थं रीतिते श्रवललोकन करना; (३) चित्ता यथार्थं रीतिसे अवलोकन करना: (४) मनोदत्तियोंका वथाथ रीतिसे श्रवलोकन करना | ये चार स्पृतति-उपस्थान श्रथात्‌ जाइतिके श्रेष्ठ साघन हैं | ३. द्रण्यमें इनके नीचे श्रथवा एकातमें पालथी मारकर गदनसे कमरतक शरीर सीधा रखकर भिल्लु जागरूक रहकर श्वास खींचता है तर प्रश्वास बाहर निकलता है; उसका आश्वास श्र प्रश्वास दी है या हृस्व, इसकी उसे पृं स्मृति होती दै, जाग्रतिपूवेक वह॒ शअपने अत्येक ग्रार्वास-पश्वासका श्रभ्यास करता ई । जिस प्रकार वह श्राश्वास श्रौर प्रश्वाखकौ सम्यक्‌ रीतिसे जानता ईै, उसी प्रकार वहं श्रपनी देहका थथा्थरीतिसे श्रवलोकन करता ई । ४. चलते समय वह यह स्मरण रखता है कि मि चल रहा हूं: खडा होता है तो मे खड़ा होता हू' यद स्मरण रखता है: ज्र त्रेठा होता * इंद्रिय और विपयके एकसाथ मिलने के वाद जो दुःख-सुंख झादि अनुभव होता है ।




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