अंधेरे के विरुद्ध | Andhere Ke Viruddh
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
283
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)यह तो आपका बड़प्पन है। मगर उन्होंने अपना पुराना श्रद्धा-माव
बनाये रखा है। गाँव के मालिक'““'नहीं-नहीं, अब पूरे अंचल के मालिक
जो ठहरे आप !!
आप भी वैसी ही बातें कर रहे हैं |”
यह् हिन्दुस्तान है हुजुूर, राज पलठ गया मगर लोगबाग नहीं
पलटे है ।*
ड्राइवर, जरा गाड़ी रोको ।--शिवालय आ गया। जरा दशेन कर
लू । इस गाँव की यह रीति रही है कि जब कभी कोई व्यक्ति एक लम्बो
यात्रा के बाद गाँव लौटता है तो पहले शिवजी के दर्शन कर लेता तब गाँव
के अन्दर आता है)
वह शिवालय में घुसा वो पुजारी जी ने आशीर्वाद देते हुए कहा ~ हम
जानते थे कि आप पहले दर्शन करके ही तो गाँव में जायेंगे । लें यह
विल्वपत्र । भगवान शंकर आपका कल्याण करें ॥'
श्रावणी पुरिमा होने के कारण रिवालय में दशेनाथियों कौ खासी भीड़
इकट्टी थी। सभो ने उसका स्वागत किया और कुछेक तो जीप में आकर
बेठ भी गए। उन्हीं में से एक ने कहा--'ड्राइवर साहब, बाजार के मोड़
पर गाड़ी रोकेंगे---मालिक का बाजार की ओर से स्वागत होगा ।
भला यह सब करने की क्या जरूरत आ पड़ी थी ?'
वाह, आप हमारे पुराने मालिक हैं !?
बाजार में घुसते ही जाने कितनी ही जानी-पह़चानो सूरतें नजर आने
लगीं । रामचन्द्र साह, सोहन साह ओर राम प्रसाद महाजनटोली में माला
लिए खड़े हैं । बूढ़े देनी साह भी इत्र का फाहा लिये सलामी बजा रहे हैं ।
ण
User Reviews
No Reviews | Add Yours...