मील के पत्थर | Miil Ke Patthar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
147
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१२ मील के पत्थर
स्कूल की ओर से स्टेशन की ओर मेरी दिशा बदल गई ॥ स्टेशन
पहुंचकर उस थर्ड क्लास के डब्बे की श्रोर बढ़ा, जिसमें तुम सफर कर
रहे थे ।
भ्राज भी याद है बापू, तुम्हारे दर्शनों के लिए मेरे मन में कसा तूफान
उठ रहा था, पर डगमगा रहे थे, कलेजा धड़धघड़ कर रहा था। मैं तुम्हें
देखूंगा--कसे होगे तुम ? तुम--कर्मवीर गांधी ! तुम्हारे कई चित्र
देखे थे, विःतु क्या चित्र सही रूप दे पाते हैं ? उन चित्रों में दो चित्र
प्रमुख थे : एक, जब तुम एक ढीला कुर्ता पहने, कंधे से एक भोला लट-
काये, हाथ में डंडा लिये सत्याग्रह के लिए प्रस्थान कर रहे हो । दूसरा,
तुम्हारे बदन में मिजंई, सिर पर काठियावाड़ी मुरेठा--ढीला-ढाला । मैं
जल्दी-जल्दी उस डब्बे के निकट पहुंचा, जिसके दरवाजे पर कुछ लोग
खड़े थे । हां, कुछ ही लोग ! मैं एक खिड़की के निकट खड़ा होकर
भीतर भांकने लगा-- कितनी उत्सुकता से, कितनी व्यग्रता से !
किन्तु तुम कहां हो ? उन दोनों तस्वीरों के आधार पर एक-एक
चेहरे को देख रहा हूं, किन्तु कहां पा रहा हूं ? एक सज्जन दीखे, गोरे-
भभूके, काफी कहावर, चेहरे से रौब टपक रहा ! हां-हां, यही गांधीजी
होंगे । जो इतना बड़ा आदमी है, जिसने कितने कमाल किये हैं, जो कर्म-
वीरै, जो श्रकेला नीलहे गोरो से लडने चम्पारन जा रहा है-उसे तो
ऐसा ही तेजस्वी, रौबदार, भारी-भरकम होना चाहिए ! किन्तु, उन
चित्रों से जरा भी समता तो इस व्यक्ति में नहीं मिलती !
मैं इसी तरह परेशान था कि वह सज्जन मेरे निकट आये ক্সীহ
बोले--गांधीजी को देख लिया ? “जी''* मेरे मुंह से पूरी बात भी
नहीं निकली । उन्होंने बताया, वह, जो उस रौबदार झ्रादमी के आगे के
बेंच पर बेठे हैं, वही गांधीजी हैं ।
बापू, तुम्हारी वह सूरत श्राज भी याद है ! रूखा-सूखा तुम्हारा
चेहरा, जिसपर सबसे प्रमुख वे दोनों कान !--जसे संसार के सारे दुःख-
दर्दे सुनने को व्याकुल। सिर पर वह टोपी--जो पीछे चलकर श्पने सुधरे
रूप में गांधी-टोपी के शुभ नाम से भ्रभिहित हुई । शरीर में पतले कालर-
वाला कूर्ता--खुरदरे कपड़े का । कमर में घुटनों तक की धोती और पेर
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