बांग्ला कथा यात्रा | Bangala Katha Yatra
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.62 MB
कुल पष्ठ :
254
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about ताराशंकर वंद्योपाध्याय - Tarashankar Vandhyopadhyay
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वोच साल पहले स्कूल-फाइनल की परीक्षा दी थी ।. पढाई-लिखाई में यों भी
अच्छा था, उस पर तीन-तीन प्राइवेट ट्यूटर ।. स्कालरदिप हाय से निकछ भी
जाय तो भी डिस्टिक्शन तो कई मिलेंगे हो । इन्हीं दिनो कालाचांद काका को
माँ के श्राद्ध में बहन-भोजियां आयी ! रीना और उसकी मां दोनों । उस समय
रोना किशोरी थी, राजकन्या जैसा रूप था उसका ।. गंतई गाव में ऐसी सुन्दर
सडकी शायद ही कमी दीस पढ़ती है । जैसा श्राम औरतों का तरीका है, श्राद्ध
काण्ड समाप्त हो जाने पर मां में कालाचांद काका शौर रीना की मा से प्रस्ताव
किया, “ब्याह कौन अभी कर डाठना है, भभी तो पंकज की पढाई बहुत बाफी
है, 'उनकी' बड़ी इच्छा है पंकज को विछायत भेज कर बेरिस्टर बनानें की । बस,
चात पढ़ी हो जाय, विछायत जाने के ठीक पहले यह शुभ कार्य निबटा लिया
जायगा, ताकि किसी मेम मे शादी करके न लौटे
वात्र हर प्रकार से योग्य था । उन लोगो को भी आपत्ति नहीं थी । प्रिताजी
और भी एक कदम आाथि बढ़ कर थोल उठे, 'लडकी सचमुच लद्ष्मी है । सिप:
बात ही नहीं, एक गढना देकर आशीर्वाद दिये देता हू !'
आशीर्वाद का दिन तम हो गया, किन्तु उसके ठीक तीन दिन पहले बनायास बद्ध-
चान हुआ ।. हैजे से पिताजी का देहान्त हो गया । रीना वर्गरह लौट गये ।
पिताजी का जैसा नवावी कारबार था, उसको देखते सभी जानने को उत्सुक थे,
कि बे कितने छास रुपये छोड़ गये है । मगर छोड़ गये थे, ये अच्दा-खामा उधार ।
जान पड़ता है, उन्होंने उधार लेने के तरीकों में अदूमूत दशता हार्मित कर छी
थी । उधार देने वाले अन्दरनी हालत का जरा भी अन्दाज नहीं लगा पाते थे ।
वे तो मानों उधार देकर स्वर्थ इतार्थ होते थे । वे ही बयों, मेरी मां तक को कभी
भनक नट्टी लगी ।
फिर भी, पाथ तो में वाकई अच्छा ही थां । कालारचाद काका बोले, “कुछ परवाह
महों । पंकन को पडाई का सर्च रीना के पिता देगे। वेरिस्टर न हुआ तो कया,
यकासत पास पर सदर अदाठत में बकील वन बंटेगा ।. किस्मत हुई तो वहील में
हाररिम हो जायगा ।'
फिलतु मां बश्ल गई, 'कालाचोंद, अभागी है यट लडकी ।. लाशीरवादि करे ही
मर्नादा ले आई ।. वहीं बहू बन कर था गई तो धर सट्ति सब कु चोपट कर
डादेगी ।
उपर रीना को मां भी जो मन में धाया बोल चेठी, 'वाल-वाल बच गये । रोना
था भाग्य ही बलवान या 1. कसा घोसेदाज था. भला आाइयी ! टीक देवी को
भूि-जेगा, उपर से रंग-पुता, भीतर मे सब सोराना। विमरंन होते हो सारी पास
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