प्राकृत वाक्य रचना बोध | Prakrit Vakya Rachana Bodh
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13.4 MB
कुल पष्ठ :
590
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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No Information available about मुनि श्रीचन्द 'कमल' - Muni Srichand 'Kamal'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श वर्णनोध
चर्ण--प्रत्येक पूर्ण ध्वनि को वर्ण कहते है । प्राकृत मे वर्ण के दो
भेद है--(१) स्वर (९) व्यज्जन ।
स्वर के दो भेद है--ह्लस्वस्वर और दीर्घस्वर । ल्लस्वस्वर की एक
मात्रा होती है । दीघंस्वर की दो माचाए होती है । संस्कृत में प्लुत्तस्वर होता
है, जिसकी तीन मात्राए होती है ।
०,प्राकृत मे प्लुत स्वर नही होता ।
० भ्राकृत में ऋ, ऋ, लू, लू स्वरो का प्रयोग नहीं होता ।
हस्वस्वर--अ, इ, उ, ए, ओ ।
वींघेस्थर--आ, ई, ऊ, ए, ओ |
ए और थो दीघंस्वर है, परन्तु प्राकृत मे ए और ओ से परे सयुक्त
व्यज्जन होने पर ए और भो को छस्वस्वर माना गया है । जैसे--एक्केक्क
(एकैकम्) , जोन्वण (यौवनम् ); आरोग्ग (आरोग्यम्) । प्राकृत मे ऐ और ओ
का प्रयोग नही होता । केवल (सू. १1१६६) से अयि को ऐ आदेश होता है ।
नियम १ (अथ प्राकृतम् १११) प्राइत मे ऋ, ऋ, लू, लु, ऐ, जौ, ड,
न, ण, प, विसर्ग, प्लुत--ये नही होते । ड और ठ्न अपने चर्ग के स्यंजनो के
साथ होते हैं।
ग़कृत में व्यजन ९६९ है--
कं, ख, ग,घ त्त, थ, द, ध, न
'ब, छ, ज, भर प, फ, ब, भ, म
ट, ठ, ड, ढ,ण य, र, ल. व, सह .
० प्राकृत मे श, थ और विस नही होते ।
० स्वर रहित इ. तथा द्वित्व ड_ ड. अ्युक्त नही होता ।
० प्राकृत मे ड और डा का प्रयोग अपने वर्ग के ब्यंजनो के साथ मिलता
है, स्वतत्र नही--
पड़ को, पड़. खो, खड़.यो,. जड़ घा दर
बड्चु, वाझ्छा, .... पब्नो, विज्की
० स्वर रहित व्यजन अत में नहीं होते है ।
० कोई भी व्यजन स्वर के बिना कु, चू, टू, तू. प् रूप में लकेजा
प्रयुक्त नही होता । कं
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