शांकर धर्म - दर्शन एक आलोचनात्मक विश्लेषण | Shankar Dharm Darshan Ek Alochanatmak Vishleshan
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17.44 MB
कुल पष्ठ :
282
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शकर मत मे रूढिवादिता और अन्ध-विश्वास का अभाव है । उनका चितन मानव को जाति धर्म वर्ण और वर्ग विशेष की सीमाओं से ऊपर उठाकर सार्वभोम रूप प्रदान करता है । परवती कमंकाण्डी दार्शनिकों ने उन्हे इसीलिए प्रच्छन्न बोद्ध रहकर तिरस्कृत करने का असफल प्रयास किया था । आचार्य शकर ने हिन्दू धर्म के पुनरूद्धार के लिए देशव्यापी यात्राए की । पूवे पश्चिम उत्तर दक्षिण की यात्राओं मे उनकी मार्गदर्शक श्रुति थी - माताभूमि . पुत्रोह॒ प्रथिव्या । भारतीय इतिहास मे राजपूती युग राजनीतिक विखण्डन का युग कहा जाता है । हर्ष के बाद अलगाव की प्रब्नत्तियाँ का प्रावल्य हुआ । प्रतिहार राष्ट्रकूट परमार चौहान आदि तथा दक्षिण के चेदि चेर पल्लव चोल चालुक्य आदि राजवशों के समय छठी से बारहवीं शती तक विघटन एव विभाजन की प्रवृत्तियाँ इतनी प्रबल हो गई कि देश एक भूगोल होकर भी अनेक राज्यों मे बट गया । निरकुश एकतत्र सामतवाद स्थानीयता एव व्यक्तिवाद राष्ट्रीयता एव देशभक्ति का ड्रास तथा राजनैतिक उदासीनता एवं अनैतिक भोगवाद के कारण देश की सास्कृतिक एव धार्मिक अस्मिता नष्ट हो गई । शकर इसी समय खोयी हुई राष्ट्रीयता एवं धार्मिक अस्मिता के पुनरूद्धार के लिए आगे आये । हर्ष युगोत्तर भारत पतनोन्मुख हिन्दू समाज की दिन प्रतिदिन बदलती और बिगड़ती विकृत कथा एवं दु्दशा का इतिहास है । शकर इसी किकर्त्त॑व्य विमूढता के बीच धार्मिक एकता और सास्कृतिक अखण्डता की रक्षा के लिए खड़े हुए । मैसूर में श्रेगेरी द्वारिफा में शारदा जगन्नाथ पुरी मे गोवद्धन तथा बद्रीनाथ
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