वृहत हिंदी लोकोक्ति कोश | Brihat Hindi Lokokti Kosh
श्रेणी : भाषा / Language
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
136.52 MB
कुल पष्ठ :
1127
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ भोलानाथ तिवारी - Dr. Bholanath Tiwari
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शकुनि आदि ऐतिहासिक जैसे हनोज़ दिल्ली दूर अस्त या अंग्रेज़ी राज में सुरज नहीं डूबता आदि तथा सामान्य जैसे न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी या जो सहरी खाय सो रोज़ा रक्खे आदि । ख कालिकता के आधार पर इस आधार पर कुछ लोकोक्तियों को सावेंकालिक तथा कुछ को एककालिक कहा जा सकता है । उदाहरण के लिए एक और एक ग्यारह होते हैं साव- कालिक लोकोक्ति है । एकता में सदा शक्ति रही है आज भी है और आगे भी रहेगी । इसके विपरीत अनेकानेक जातियों के संबंध में प्रचलित लोकोक्तियाँ अब प्रभावी नहीं रह गई हैं क्योंकि एक ओर तो उनके व्यवसाय अब अन्य लोगों ने भी अपना लिए हैं और दूसरी ओर उनमें से अनेक ने अन्य व्यवसाय अपना लिए हैं । उदाहरण के लिए नाई धोबी दरज़ी तीन जाति अलगरज़ी जैसी लोकोक्तियाँ न तो. इन जातियों के अस्तित्व में आने के पहले थीं और न अंतर्जातीय चविवाह की आँधी में जाति-पाँति की समाप्ति के बाद इनकी साथेकता या इनके प्रयोग की संभावना ही है । इस तरह इस वर्ग की लोकोक्तियों की आयु सीमित होती है अत इन्हें एककालिक या. विशिष्टकालिक ही कहा जा गकता है सावंकालिक नहीं । ग क्षेत्र या देवा के आधार पर इसके आधार पर सर्वेक्षेत्रीय या एकक्षेत्रीय तथा एक- देशीय वहुदेशीय या सर्वेदेशीय आदि वर्ग बनाए जा सकते हैं । उदाहरण के लिए कुछ लोको क्तियाँ जो सार्वभौम सत्य को अभिव्यक्ति देती है सर्वक्षेत्रीय या सर्वेदेशीय हैं इसके विपरीत कुछ सवे न होते हुए बहु या कईदेशीय होती हैं । उदाहरण के लिए तक़दीर में विश्वास रखने वाले देश या क्षेत्र के लोगों में तक़दीर का लिखा मिटता नहीं या 1 15 एप एप 01. 0०. 9०८6 जैसी लोकोक्तियाँ चलती हैं । समाजवादी देशों में कमंव दिता ने ऐसी लोकोक्तियों को निरस्त कर दिया है । इसके विपरीत बिना भगवान रास्ता आसान एक रूसी लोकोक्ति जसी. लोकोक्तियाँ आस्तिक देशो में न वन सकती हैं न प्रचलित हो सकती हैं । ऐसे ही गुरु कीजे जानकर पानी पीजें छानकर सार्वकालिक भी है सावंदेशिक भी है किन्तु के चोर खादर में के खद्दर मे या तो चोर नदी की घाटियों के वीहडों में रहता है या फिर खदूदर की पोशाक में केवल तब से प्रचलित हुई जब भारत में स्वतंत्रता मिलने के वाद खद्दरधारियों के चरित्र ने तरह-तरह की चोरी करके खद्दर को बदनाम कर दिया तथा तभी तक यह लोकोक्ति चलेगी जब तक उनका यह चरित्र अपरिवतित रहता है। इस तरह यह सार्वकालिक नही है और सावंदेशिक भी नहीं है क्योकि यह भारत के लिए ही सत्य है किसी और देश के लिए नही । ऐसे ही मजबूरी का नाम गांधीवाद है या मजबूरी का नाम महात्मा गांधी है गांधी के नाम के दुरुपयोग से जनित आधुनिक भारत में ही अनुभूत भौर प्रयुक्त लोकोक्ति है । अर्थात् न तो यह सावंदेशिक है और न सार्वेकालिक | घ विषय के आधार पर संबद्ध विषय के आधार पर लोकोक्तियों के अनंत भेद हो सकते है । जैसे नीति-संत्ंधी व्यवहार-संबंधी स्वास्थ्य-संबंधी शकुन-संबंधी खान-पान-संबंधी जाति-संबंधी धर्म-संबंधी भगवान-संबंधी ईमान-संबंधी व्यापार-संबंधी खेती-संबंधी स्त्री-संबंधी पुरुष-संवंधी तथा बालक-संबंधी इत्यादि । आगे कोश के सुल भाग पर एक दृष्टि दौड़ाकर विषयों के आधार पर लोकोक्तियों के अनेकानेक वर्ग किए जा सकने का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है । दा रचयिता के जात-अज्ञात होते के आधार पर इस आधार पर दो वर्ग बनाए जा सकते हैं ज्ञातनामा अज्ञातनामा । कवीर तलसी आदि विभिन्न कवियों की जो पंक्तियाँ लोकोक्ति हा बन चुकी है वे ज्ञातनामा हैं तथा जिनके बारे में यह ज्ञात नहीं है वे अज्ञातनामा हैं । उदाहरण के 18
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