मरुकुंज | Marukunj
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
196
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
काशिनाथ त्रिवेदी - Kashinath Trivedi
No Information available about काशिनाथ त्रिवेदी - Kashinath Trivedi
जीवराज महेता - Jivraj Maheta
No Information available about जीवराज महेता - Jivraj Maheta
मथुरादास - Mathuradas
No Information available about मथुरादास - Mathuradas
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१
उद्देश्य
प्रकृतिका नियम तो यह माहम होता है कि मनुष्य अपने
जीवनका आरम्भ नीरोग दशामें करे । पेदा होते ही तन्दुरुप्तीका
खयाल रखनेकी क़िम्मेदारी मनुष्यके सिर आ पडती है | इस
काममें मनुष्य जिस हद तक असफल रहता है, उसी हृद तक
वह वीमारीका शिकार_ बनता है । दूसरे शब्दोरमे, सव तरदके
रोगोंकी पूरी-पूरी रुकावट से ही तन्दुरुस्तीकी हिफाजत होती है ।
छेकिन अनगिनत आदमी ऐसे हैं, जो कई तरहकी अपनी और
पराई मजवूरियोके कारण इस आदर स्थितिसे वचित रद जति हैं ।
शरीरे जो अनेक रोग वार-बार पैदा होते हैँ, उन सब
रोगोंमें निराला एक रोग है, जो राजरोग था क्षयरोग कहलाता
है । यह रोग बहुत पुराने ज्ञमानेसे दुनियाकी सभ्य जनताके
पीछे पडा है, ओर आज भी इसका वडा क्षोर है ।
राजरोग मनुष्यके तन, मन ओर धनका शोषण करनेवाला
ओर एक हरूम्बे अर्स तक दिलमें आशा-निराशाकी लहरें पेंदा कर
आदमीको थकानेवाला रोग सावित हुआ है । इसका नाम सुनते
ही छोगोंकी आँखोंके सामने अंधेरा छा जाता है ।
लेकिन दरअसछ हालत मगजलकी तरह एकदम निराशा-
जनक नहीं है । आयुर्वेद या बेबकमें ऐसा कोई रामवाण व
चिन्तामणि उपाय नहीं है, जो इस रोगको मिटा सके; फिर भी
इसका रोगी हमेशा अभागा ही नहीं माना सया है, न यह् रोग
User Reviews
No Reviews | Add Yours...