प्रार्थना-प्रवचन (पहला खण्ड) | Prarthna Pravachan (Pehla Khand)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
486
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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प्राथना-्चन्रन 8
छूटती होगी तब भी मेरे मुंहसे राम-रहीम' क्रृष्ण-करीम''का जाप चलता
होगा। मेने बता विया कि में भंगी हूं, ईसाई हूं, मुसलगान हूं और
हिंदू तो हूं ही। मेरे राथ यहां बादशाह खान भी तो हैं, मुझको आप
कंसे रोकं सकते हँ ? लेकिन श्राप रोकं । एक वच्चा भी मुझे रोक
सक्ता हे ।
यूवक--श्रपि पंजावं जाइए |
गांधीजी---में वहां जाकर क्या करूगा ? मुभमें तो जितनी शक्ति
ह वह् पंजाब, बिहार श्रौर नोग्राखालीकी सेवामे यहां रहते हुए खर्चे कर
ही रहा हूं ।
कई लोग उस यूवकको हटाने लगे कि हम प्रार्थना सुनेंगे ।
गांधीजी--भाप लोग इसे धक्का न दं शांतिसे काम लें ।
यूुवक--हम लोगोंकों श्राप चार मिनट बीजिए, हम आपसे बातें
करेंगे।
गांधीजी--मेरे पास समय नहीं है श्रौर बहसकी जरूरत भी नहीं
है । श्रदवसे में हृतता ही कहूँगा कि आप मुझे हाँ या ना कह दें।
युवक--हम भ्रापको प्रार्थना नहीं करने देंगे।
गांधीजी--सब लोग शांतिसे बेठे रहें। में जा रहा हूं । इन
भाइयोंकों कोई न छेड़ें । ये भले ही अपनी विजय मान नें, पर यह वया
विजय है ? कोई पीछे छरा भोक दे तो उसमे क्या बहादुरी है ! में इतना
ही कहूंगा कि यह हिंदू-धर्मका कत्ल हो रहा ह ¦ श्राप लोग सोचिए
और समकझिए। कल भी भ्राकर में यही प्रइन करूंगा और झाप प्रार्थना
करनेको मना करेंगे तो में चला जाऊंगा।
प्नोश्रासालीसे लोटनेषर गांधीजीने भज मन प्यारे सीताराम
की जगह “भज मन प्यारे राम-रहीस, भज सन प्यारे क्ृष्ण-करीस की
धुम शुरू की थी ।
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