कैदी और बुलबुल | Kaidi Aur Bulbul
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
274
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ केदी और चुलबुल
দই) श्रपने हिपुटी साहब को भेजना । श्रमी तक कमरे डी०
डी० टी० नहीं छिड़का गया है। कहता था, कि चादरें भेजेंगे ओर दे दीं.
इस गरमसी में सढ़ी-गली बइबूदार कम्बल [?
बाबू कुक्ष अड़ियल से थे। कुछ जोश से बोले, “देखिर साहब
“जाग जा थे |? एक बोला |
“লী আই০ ভী০ ভা ভুলা 1১ दूसरे ने आवाज कशी !
“चला जा, जो मरजी आवे करना {° तीक्षरा चिल्लाया । =
बाबू जी तो सद्दी-पद्दो शूल गए और रजिस्टर. बगल के नीचे
दवा कर घुपचाप खिप्तक गएु। उसके थे बरकन्दाज भी अदा के साथ
पीछे द्वो क्षिए ।
उनके चले जाने पर सब ठहाका सार कर हँस पढ़े थे । तभी'
गोशाईं महाराज की छुतबुत॒ जड़ कर एक के कन्धे धर बैठ गहै। दो
लदके घड़ी पर पानी भररहेथे। वे नुपचाप भरते रहे । सबको
बाबू जी के उक्ल प्रकार माग नाने पर छुरी थी} ये जितने हुबले-पतक्े
दीखने भें लगते, उतने ही तेज तर्राक थे। केंदी उनकी कितनी ही `
सेवा करें, कोई उनको खुश नहीं कर पाता था|
“यही सत्तर-अरुसखी पाता होगा, पर झकढ़ देखो |?”
“यह वर्ग भेद की बात उे---ग्रराजनेतिक ! दुसरे साधने कषा}
उनको सानो कि उसके इस उपह्रास से घोर अपन्तोष था ॥
' “ये चापलूप लोग मध्यचर्ग की सड़न को व्यक्त करते हैं। एक
ओर अफसरों की चापलूसी करते हैं, दूसरी ओर *“' व
यहो को समाज व्यवस्था ही ऐसी दे ९?
(पर बह तो अँग्रेज मे हुकूमत करने के लिए बनाई थी, पर
कॉप्रेस भी तो हुकूमत करना सौख रही है । उन सड़्े-गल्ले अफसरों के
बूते पर ही तो गाँधी जी का “राम राज्य” चल रहा है ।'”
[. १३.
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