कैदी और बुलबुल | Kaidi Aur Bulbul

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Kaidi Aur Bulbul by श्री पहाड़ी - Sri Pahadi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ केदी और चुलबुल দই) श्रपने हिपुटी साहब को भेजना । श्रमी तक कमरे डी० डी० टी० नहीं छिड़का गया है। कहता था, कि चादरें भेजेंगे ओर दे दीं. इस गरमसी में सढ़ी-गली बइबूदार कम्बल [? बाबू कुक्ष अड़ियल से थे। कुछ जोश से बोले, “देखिर साहब “जाग जा थे |? एक बोला | “লী আই০ ভী০ ভা ভুলা 1১ दूसरे ने आवाज कशी ! “चला जा, जो मरजी आवे करना {° तीक्षरा चिल्लाया । = बाबू जी तो सद्दी-पद्दो शूल गए और रजिस्टर. बगल के नीचे दवा कर घुपचाप खिप्तक गएु। उसके थे बरकन्दाज भी अदा के साथ पीछे द्वो क्षिए । उनके चले जाने पर सब ठहाका सार कर हँस पढ़े थे । तभी' गोशाईं महाराज की छुतबुत॒ जड़ कर एक के कन्धे धर बैठ गहै। दो लदके घड़ी पर पानी भररहेथे। वे नुपचाप भरते रहे । सबको बाबू जी के उक्ल प्रकार माग नाने पर छुरी थी} ये जितने हुबले-पतक्े दीखने भें लगते, उतने ही तेज तर्राक थे। केंदी उनकी कितनी ही ` सेवा करें, कोई उनको खुश नहीं कर पाता था| “यही सत्तर-अरुसखी पाता होगा, पर झकढ़ देखो |?” “यह वर्ग भेद की बात उे---ग्रराजनेतिक ! दुसरे साधने कषा} उनको सानो कि उसके इस उपह्रास से घोर अपन्तोष था ॥ ' “ये चापलूप लोग मध्यचर्ग की सड़न को व्यक्त करते हैं। एक ओर अफसरों की चापलूसी करते हैं, दूसरी ओर *“' व यहो को समाज व्यवस्था ही ऐसी दे ९? (पर बह तो अँग्रेज मे हुकूमत करने के लिए बनाई थी, पर कॉप्रेस भी तो हुकूमत करना सौख रही है । उन सड़्े-गल्ले अफसरों के बूते पर ही तो गाँधी जी का “राम राज्य” चल रहा है ।'” [. १३.




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