मास्टर साहब | Master Saheb

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Master Saheb by रवीन्द्रनाथ ठाकुर - Ravendranath Thakur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ॐ मास्टर साहब खुद भी नहीं जानता था कि उसके मन के अन्दर स्नेह का इतना रस, अवसर मिलने की प्रतीक्षा में इस तरह सम्वित हो गया था। वेणु के साथ खेलकर, उसको पाकर, उसकी सेवा कर दर्लाल् स्पष्ट- रूप से समझ गया था कि अपनी श्रवस्या की उन्नति करते की अपेक्षा भी भनुष्य के लिए एक और चीज विद्यमान. है--वह जब अपना असर डाल देती है,. तब उसके सामने और किसी की जरूरत नहीं पड़ती । वेशु भी हरलाल को पाकर बच गया। क्योंकि, उस धर में वही एक लड़का है. ओर एक तीन वर्ष की बहन है--वेशु उन सबको साथी बनाने के लिए योग्य ही नहीं समझता। मुहह्ये में' समान उम्र के लड़कों का अभाव नहीं है, किन्तु अधर लाल अपने घर को अत्यन्त बड़ा घर मान लेने का सुदृढ़ विचार रखता था, इस कारण मिलने-जुलने के लिए. उपयुक्त बालक वेशु के भाग्य में न जुद् सके | इसीलिए हरलाल उसका एकमात्र साथी हो गया। अनुकूल अवस्था में जितने भी ऊघम- होते हैं, वे दस जनों में बँंठ जाते हैं | किन्तु इस अ्रवस्था में अकेले हरलाल को ही उन्हें सहना पड़ता था । इन सभी उपद्रयों को प्रतिदिन सहते-सहते हरलाल का स्नेह और भी दृढ़ होने लगा। | ' यह . हालत देखकर रतिकान्त कहने लगा--“हमारे सोना बाबू को माध्र साहब चौपट करने पर तत्पर हो गये हैं ।”” अधर लाल के भी मन में जबतब यह विचार उठने लगा कि मास्टर्‌ साहब केसाथ छात्र का सम्बन्ध ठीक नहीं. जान पड़ता | किन्तु इंरलाल को वेगु के संसर्ग से हटा देने की समथ्यं अब किसी में नहीं है | .....




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