साहित्य-सन्दर्भ | Sahitya-Sandarbh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
286
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रीहषं का कलिथुग
(१)
नेपध-चरित-नामक महाकाव्य की रचना करनेवाले श्रीहर्ष को हुए
कम-से-कमत ८०० वर्ष हो गये। वे क़न्नीज-नरेश जयचंठ के समय में विद्-
मान थे । मदह्माविद्वान् थे सव शाखं के ज्ञाता थे। योगी भी थे।
उन्होंने ख़ुद ही लिखा है--
य सक्तात्कुरंत समाधिषु पर अद्यप्रमोदारीवम् ।
नैपध-चरित के सन्नहवें सर्ग में उन्होंने, प्रसंग-चश, कलियुग का वर्णन
किया है। कलजुगी आ्रादमी कैसे होने चाहिए या उस ज़माने में कैसे
ये, यह बात उनके इस वर्णन में ख़ू्ब देखने को मिलती है । ऐसे
मनुष्य श्रुतियों, स्टृतियों तथा अन्य शास्त्रों के वचनों पर कैसे-कैसे
आाक्षेप कर सकते हैं, और उनके विरोधी आस्तिक जन उन आक्षेपों
के उत्तर में कैसी-कैसी दल्लीलें पेश कर सकते हैं, यह भी भ्रीहर्ष के वर्णन
से अच्छी तरह जाना जा सकता है। उन आज्षेपीं, ओर आक्षेपों के
उन उत्तरों, में किसका पक्ष प्रबल और किसका निर्वल है, इसका भी
अनुमान श्रीहप॑ की उक्तियों से किया जा सकता है | इस महाकवि
फी इस फलियुग-वर्णना से एक बात और भी वदृ माके की मालूम
हो सकती है । वेदों मे बहुत पुराने ज़माने की कुछ रूढ़ियों का
उल्लेख है। वे रूढ़ियॉ उस समय रायज थीं। जन-समुदाय उन्हें सुदृष्टि
से देखता धा । श्राजकल वे कुष्ट से देखी जाती द । इसी से श्राज-
फल के कुछ नये वेदज्ञ उनका श्रथ उस्र समय के समाज के श्रुखार
करक श्रपनी विदरत्ता यौर वेदसता प्रकट करते हैं। पांडित्य भौर
वेदशान से वे शायद अपने को श्रीहर्ष से भी सोगुना अधिक समझते
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