हिन्दू-राष्ट्र का नव-निर्माण | Hindu-rashtra Ka Nav Nirman
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
310
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about आचार्य चतुरसेन शास्त्री - Acharya Chatursen Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दिन्दू-राष्ट्र का नव निर्माण ११
स्वाधीनता के प्रकाश मे छाती फुला कर देशभक्ति, विज्ञान, -
साहित्य ओर कल्ा-कोशल के क्षेत्रों में मस्तिष्क का विकास
करते हैं, तव वे वदनसीब किसी नालायक लड़के के सुपुदं कर
दी जाती हैं, इसलिये कि वे इसकी और इसके घर के आदमियों'
की गुलामी करें, जूतियां, लात और गालियां खायं, उसकी.
पाशविक-बासना की दासी बनें, कद्डी उम्र में बच्चे जनें, जवानी
* से पहले दी बुढ़िया हो जायं, और भरी जवानी में मर जायं
या विधवा हो जायं । मध्य-काल में हिन्दुओं ने-र्तियों को यदी
के साथ जिन्दा एक दिया है चनौर उसे उन्होने धमं वताया है ॥
ये पाखएड और ठकोसलों को ध्म सममने वाले वद्नसीव
हिन्दू पाप, खून ओर अपराधों को भी धर्म समभते रहे हैं । जहां
पुरुषां के लिये दस, वीस ओर पचास तक विवाहं करने जायज
थे, जहां पुरुष अकेला सैकड़ों स्त्रियों को पत्नी वना सकता था,
चहां पत्नी को कड़ा पतिद्गत पालने की आज्ञा थी। इन स्वार्थी
भेड़िये ग्रन्थकारों ने यहां तक लिखा है कि अन्धा, काना, कुबड़ा,,
लुत्रा, शरावी, हरामखोर कैसा ही पति हो, स्वरी के लिये देवता
के समान पूजनीय है । वही उसका परमेश्वर ह । एेसे पतित
पतियों को वेश्या के घर कन्ध पर चदा कर ले जाने कै लिये
पति ब्रताओं की तारीफ की गयी है । तुलसीदास जैसों ने स्त्रियों
को ढोल के समान पीटने योग्य बताया है]
इन सब भयानक पापोंका फल हाथों हाथ आज हिन्दू भोग रहे
हैं। उनकी शान बर्बाद हो गयी,उनका बंश नष्ट होगया,उनका गौरव
घूलमें मिल गया और उनकी मेधा,प्रतिभा तथा तेज सब कुछ गया ।
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