काव्य - चिंतन | Kavya Chintan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
158
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)फाव्ययचतन
जिन में से अधिकांश काम-चेतना के प्रोद्भास हैं, संश्लिष्ट समूह है লী হল
रागनद्बेषों में भी उन्हीं को अभिष्य करने की उत्कट आवश्यकता होती ই
जिनका सम्बन्ध अभाव से है। क्योंकि अभाव में पुकारने की प्रेरणा होती
है, पूर्तिं मे शान्त रहने कौ । इसका तात्पर्य यह है कि मे कविताया कला
के पौ श्रात्माभिव्यक्छि की प्रेरणा मानता हुँ; और चूँ कि आत्म के निर्माण
में काम-वृतसि का और उसकी अतृप्तियों का योग है, इसलिए इस प्रेरणा में
उनका विशेष महत्त्व सानना भी अनिवाय समझता হট 1”
“तो इसका अर्थ यह हुआ, गुरुदेव; कि शत्येक व्यक्ति साहित्य की
रचना करता हे १
“हाँ सी और नहीं भी। हाँ इसलिए, कि अपने जीवन के विशिष्ट
इणो मे प्रत्येक व्यक्ति रवस्य साहित्य की सृष्टि करता है, चाहे वह कोई
स्थिर आकार धारण कर हमे सामने न श्राये; ओर नदीं इसलिए, कि रूढ
अथ में जिसे साहित्य कहते हँ वह साधारण व्यक्तित्व की साधारण अभि-
व्यक्ति नहीं है, विशेष व्यक्तित्व की विशिष्ट अभिव्यक्ति ही हे। विशिष्ट
ग्यक्तिरव का श्रथं उस ब्यक्ति से हे जिसके राग-द् ष असाधारण रूप से বীল
हों---इतने तोब हों कि उसके आत्म और अनात्म के बीच होने वाला संघर्ष
अ्रसाधारणतः प्रखर दो। ऐसा ही শ্যক্ষি प्रतिभावान् कहलाता ह--जिस
व्यक्ति के अं ओर वातावरण में या प्रवृत्ति और क्॒ंव्य में--अथवा फॉयड
की शब्दावल्वी में अन्तर्वेतन ओर निरीक्षक “चेतन के बीच--जितना ही उत्कट
संघर्ष होगा उसको प्रतिभा भी उतनो ही प्रखर होगी ओर उतनी दी प्रखर
उसकी सर्जन की प्र रखा भी ।
इस प्रकार संक्षेप में मेरे निष्कर्ष ये हैं :---
(१) काब्य के पीछे आत्माभिज्यक्ति को ही प्र रणा है ।
(२) यह प्रेरणा व्यक्ति के अतरंग--अर्थात् उसके भीतर होने
वाले आत्म ओर अनात्म के संघर्ष से ही उद्भूत होती हे। कहीं बाहर से
जानबूझ कर पाप्त नहीं की जा सकती ।
(३) हमारे आत्म का निर्माण जिन प्रवृत्तियों से होता है उनमें
काम-चृत्ति का प्राधान्य हे, श्रतएव हमारे व्यक्तित्व मे होने बाला आत्म अर
अनात्स का संघर्ष मुख्यतः काममय है, ओर चूँकि ललित साहित्य तो मूलतः
रसात्मक होता हे, उसको प्र रखा में कामत्ति की प्रमुखता असंदिग्ध ही ह ।
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