हिन्दुओं के व्रत और त्योहार | Hinduo Ke Vrat Aur Tyohar

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Hinduo Ke Vrat Aur Tyohar by कुंवर कन्हैयाजू - Kunvar Kanhaiyaju

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गनगोर की कथा ७ पीडे उश्च कुल की महिला आईं । वे सालो श्रङ्गार, बारहो आशभूषणों से सजी हुईं नाना अकार के पकवान ओर पूजा की सामग्रियाँ चाँदी-साने के थालों में लगाकर ले आई। उनके देख कर शिवजी ने कहा--“गोरी, तुमने सम्पूर्ण सुहाग-रस तो साधारण জিআঁ में वितरण कर दिया । ब इनको स्या देती हो ? इस पर पावती जो ने कहा- “व्याप इसकी चिन्ता न करे । उनको उपरी पदार्थी से बना हुआ रस दिया गया है इस कारण उनका सुहाग धतो से रहेगा परन्तु भं इन लोगों के अपनी उंगली चीर कर आधे रक्त का सुहाग-रस देती ह । श्रस्तु, जिस किसी के भाग में मेरा दिया यह्‌ सुदाग-रस पड़ेगा हव मेरी तरह तन-मन से सौभाग्य चतो होगी 1 निदान जव खियाँ पास आर शरोर पूजा कर चुकीं तय पार्वतोजी ने अपनी गली चीर कर उन पर छिड़की । उँगली में से जो किञ्चित रक्त निकला उसी का एक-एक दो-दे छींटा किसी- किंसो पर पड़ा । मतलब यह कि जिस पर जैसे छोटे पड़े उसने वैसा ही सुहाग पाया। है इस काम से निवत्त होकर पावतीजी ने कटा किं अव मुभेभी अपना पूजन करने की आज्ञा दी जाय। शिवजी ने उत्तर दिया-- “तुमको पूजा करने के तिये क्या में मना करता हूँ ? करो |” तब पार्वती जी ने कहा कि में यहाँ पूजा नही करूँगी। आज्ञा हो ते नदो-तट पर जाकर वहीं पूजा करूँ। शिव जी ने आज्ञा दे दी । तब पावेतो जो ने नदी के किनारे जाकर स्नान किया। फिर बालू का महादेव बना कर वह पूजन करने लगीं । पूजन के वाद्‌ बालू के




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