जैन साहित्य का बृहद इतिहास | Jain Sahitya Ka Brihad Itihas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
123
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सआरम्भकाल হু
नारायण, भारदि, कालिदास और माष जादि सस्कृत कवियोके नामोका
गौरव के शाप उत्केख करते ह । संस्छृत कवियो का उत्छे पप की स्वनाओ
मर नही मिलता । किन्वु श्रीह, कालिदास, भारवि, वाण, भटूनारापण सादि
सस्कुत कवियों के भाव तथा शिल्प पप की कृतियों भे दृष्टिगोचर होते हैं ।
रखना-तत्र मे फालिदास से अपने फो सौगुना बढा-घढावार फहने में पोन्न
समोच नही करता ऐै। हाँ, रन्न ने बडी सम्नता से रामायण, महाभारत के
कवियों और पथ-णैली मे कालिदास, गयविधान मे बाण आदि के प्रति अभि-
सदन के साथ आदर भी व्यक्त किया है। इससे यही निष्फर्ष निकलता है कि
लारभिक कन्नड कवि प्रस्त के विस्यात रचनाकारों का अवध्य अनुसरण
करते आये हैं।
भाव, रीति और वस्तु के अतिरिक्त कन्नठ कवियों में सस्क्ृत के छन््द भी
अपनाये हुए थे । रामायण, महाभारत, रघुवद्ष और इतर नाटक आदि सस्कृत
की श्रेष्ट रचनाओ मे अनुष्टुप्, इन्द्रव्ना, वक्षस्य, मालिनी और आर्या बडे
लोकप्रिय छन्द पे। नृपतु ग, नागवर्म और केधिराज ने जो उद्धरण दिये हैं,
उस आधार पर पूर्वोक्ति निष्कर्ष निकाछा जा सकता है। वर्णबवुत्तो मे अनेक
अ्रयोम करने के वाद उन्हे कन्न की प्रङृति के अनुबुलन देखकर फवियो ने
उनका पर्त्यग कर, कद আব মালা, ঘহ্নতি আহি का प्रयोग आरभ
किया होगा । काछ़ान्तर में जब सस्कृत में चपूर्तीछी छोकप्रिय हुई तो कल्नड
के मैन कवियों ने भी इस काव्यपिधा को सूच अपनाया ।
सस्क्ृत की पधाव्यपरम्परा से अनुवराणित होकर দন্ত কানন के सुनिन राम्मन्द्र
रुप धारण करने के पूर्व मन्नड प्रदेश में संस्कृत भाषा द्वारा प्रचारित सभ्यता
एव संस्क्ृति का प्रभ्नाव फम नही था। यह भ्रमाव ईमा पूर्व तोसरी सदी से
ही देखने मे आता है। चित्रदुर्ग के आसपास उपछब्ध अगोककालीन प्रोकृत
অমিত ही इसके सुहृद प्रमाण हैं। भारभ में सस्कृत तथा प्राकृत्त राज्या-
धित भाषायें थी । धीरे-धीरे यह गौरव देक्षी-भाषाओं को प्राप्त हुआ । कन्नड
भी काव्योपयोगी मानी गई । अश्ञोक के ये अभिरेश ब्राह्मी-डिपि में हैं। इसी/
ब्राह्मी से कन्नड लिपि का विकास हुआ होगा। कन्तड में प्राकृत की पदा-
वल्षियाँ ययेष्ट है। वैयाकरणों के कथनानुसार ये पद सस्कून से अपभ्रश की
बवस्था को प्राप्त फरने के पूर्व के हैं। इन पदो का विकास धर्म, दर्शन,
सभ्यता और इतिहास आदि से सबद्ध था ।
#कत्नड का अपना छद |
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