शिवसिंहसरोज | Shiv Singh Saroj

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Shiv Singh Saroj by पं. रूपनारायण पाण्डेय - Pt. Roopnarayan Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शिवर्सिहसरोज + ४ योध्याप्रसाद वाजपेयी सातनपुरवा साहित्यसखुघासागर-म्रंथ उड़िगे चकोर मोर खैज शिलीमुख्य जोर जेग लगे उरग? तुरग शग दिपनाह । सख मारि मन हारि कंज कारि बूढ़े बारि उपर प्रीन की परीन की परी न आह | अवध अकल यों बहाल इर दल लाल सौति-साल बोलचाल वाह-वाद आह-आइ । लखत सखत दसखत ये तखत भाव बखबबलंद प्यारी तेरे नेन पाद- शाह | १ ॥। घनस्पाम-घडा सी छटा सी दुकूल प्रकासत भौघ विलाजत ही | बिन देखे छपा सी छमासी पला उपदॉसी की नासी न कार्जत ही।। सूदु हॉसी की फॉसी मैं फॉसी फिरे सुखमा सी उदासी न साजत ही । विि बॉसी ये गोसी सिखा सी हिये लगे वॉसी विसासी के बाजत ही २ टी बाटिका-विहंगन पे बारिगा-तरंगन पे वायु-बेन गंगन पे ब- सुधा बगार है । बॉकी बेछु-तानन पे बंगले बितानन पे बेस आष पानन पे बीरथिन बजार है ॥ बन्दावन-बेलिन पे बनिता नबेलिन पे ब्रजचन्द्र-केलिन पे बंशीबट मार है। बारि के कर्नाकन पे वद- लन बेकिन पे बीजुरी बलाकँन पे बरखा-वहार है ॥ ३ ॥ हरखे इरोल है थमरखे अनंग हेत करखे कलौंपी चोपि चातक- चप्ू चली । उमड़े घड हैं मानि करने कटा हैं छटा फेरत पटा हैं ठटा सुर की हटाकिली ॥ घेरि के अड़े हैं बिन वूँदन लड़े हैं औष आनंद खड़े हैं देखि दादुर बड़े दिली । कादर बियोंगी दारि चादर बलाक फेरि बादर बहादर को नादर फते पिली ॥ ४ ॥ रदो। नोक। ३ पक्षी । ४ नदी । ४ चैदोवा | दे गली 1७ करण । ८्बगले । ६ मोर ।




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