कर्म्म मार्ग भाग - 1 | Karmm Marg Part - 1

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Karmm Marg Part - 1  by गोपालराम गहमर - Gopalram गहमरबाबू हरिदास हलदर - Babu Haridas Haldar

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बाबू हरिदास वैध - Babu Haridas Vaidhya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श् पहिला भाग हु & थी थी की व ०७ की का पर भी एकाघ काम लेकर नायव रामलाल के घर जाते थे । हो सकता है कि मिताई दिखाने के लिये यह जाते हो लेकिन उसके लिये महीने में जितना जाना उचित है उससे चहुत अधिक उनका कदम वहाँ झाता था । इसमें सन्देह नहीं कि इससे रामलाल बाघ प्रसन्न होते और कभी कभी उनको भोजन का निमंत्रण भी दिया करते थे । एक दिन की वात है भ चावू नायव महाशय के यहाँ भोजन कर रहे थे । मां के वीमार हो जाने से ही रसोई पशोस रही थी । चावू देमाझिनी को यहाँ 4 शोर कई वार पहले देख थे । जिस तरह विड़ाल पींजड़े में पड़ी विद्दंगिनी को ताकता है राघावल्लम भी उसी तरह हेमाड़िनी को देखते थे । हेमाड्िनी सन ही मन यह वात सम- सती थी । लेकिन समझकर भी उसका कुछ इलाज नहीं कर सकती थी । पींजड़े का पक्षी विड़ाल की ताक का इलाज ही कथा कर सकता है ? हेमाड़िनी जब परोसने ्ायी थी तभी रामलाल ने पूछा- कहिये राघावलज्ञस चाबू तस्कारी कैसी उतरी है ? सूड़ हिलाकर राधावल्ञस ने जीस चट पटाते हुए कहा-- प्तस्कारियों का क्या कहना है बहुत अच्छी हुई है। क्या चात है । किसका बचाया है सि्नो बावू । चनाया तो हे नन्दू दी बहन देमसाड़िनी का । स्वाद चा चाह देसाझ़िनी का दोनो हाथ तब तो सोने से मढ़ा देना चाहिये । राम०-हेम हमारी साच्तात अन्नपूर्णा है कि--




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