मंत्र योग संहिता | Mantra Yog Sanhita
श्रेणी : मंत्र / Mantras, योग / Yoga
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.97 MB
कुल पष्ठ :
174
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श् मन्त्रयोग-संदिता ।
नस
उसी नामरूप के अवलम्बन से ही सुकौशल पूर्ण क्रियाओं
के द्वारा साधक चित्तवृत्तियों का निरोध करके वन्धन से
सुक्त हो सक्ता है। 6 ।
जहां कोई कार्य्य होगा वहां कस्पन झवरय होगा |
झौर जहां कम्पन होगा वहां शब्दका भी होना स्थिर
निश्चय है, यह वात स्वतःसिच् और विज्ञानाचुमोदित है ।
सष्टि के श्रारम्भमें जब साम्यावस्था की प्रकृति से प्रथम
सष्टिकास्य श्वारम्भ हुआ तब उसी साम्यावस्था से जो
प्रथम हिल्लोल की ध्वनि हुई वही प्रणव है । + । यह केवल
विज्ञानवेत्ताओं का श्रनुमान सिर विपय नहीं है; श्रत्युत
योगीलोग इसको प्रत्यक्ष करते हैं । योग़ साधन के दारा
चित्तबत्तियों का निरोध करके साधक जब साम्यावस्था
प्रकृति के निकटस्थ हो जाता है,' तब उस साधक को सदा
सबदा वहू प्रणव ध्वनि सुनाई देती है।
. साम्यावस्था की प्रकृति के साथ जैसा प्रणव का सम्बन्ध
है वैपम्यावस्था की प्रकृति के साथ ऐसा ही बहुत से बीज
मन्त्रों का सम्वन्ध है । साम्यावस्था की प्रकृति में सत्त्व,
रज़ श्ौर तम इन तीन युखों की समता रहती है । जैसे.
किसी थाली में जल रखकर उस थाली को हिलायां जाय
' तो सब से प्रथम उस थाली का सब जल एकबार एकदम
हिल जायगा और पीछे उसीसे नाना तरडू उत्पन्न होकर
& इस अन्य के 'पन्ययोग-लक्षण” नामक प्रकरण में द्टव्य है ।
1 इस प्रत्य के सल्नयोग:विश्ञान” नामक प्रकरण में है।
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