बैसवाड़े का जीवन | Baesvaade ka Jeevan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.26 MB
कुल पष्ठ :
206
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्० चैसवाड़े का जीवन
लि: जिंक जला करनी
दाम ने झपने सोकगीठो की श्रलम रक्षा की हूँ । तिथि-त्यौहार जाने
दीजिये, साँदा को मन्दिर में जल चढ़ाने जायेंगी तो गायेंगी, पानी मरनें
जायेंगी तो गायेंगी, चदकी पीसेंगी तो गायेंगी,-मतलब यह कि जहाँ
लार स्विमाँ इचट्टी हुई' तो वे या तो एव-दूसरे की वुराई करेंगी या फिर गीत
गायेंगी । काल्य झौर सगीत के साथ पथाझं के रूप में एक विशाल
गद्य साहित्य भी है जो भ्रभी पुस्तकों में लिपियद्ध होकर मुद्रित नही हुझा ।
दायद ही कोई भ्रमागा वालक हो जो सोने के पहिले दो-चार कथाएँ न
सुन लेता हो । बड़ें-बूढो ने श्रपनी जात बचाने के लिये यह नियम वना
लिया है कि दिन में कथा न सुनायेंगे 1 शास्त्र की दुहाई देकर ये वहततें
है कि जो दिन में कथा सुनायेगा, वह रास्ता भूल जायेगा झौर सुननेवाले का
मामा खो जायगा । इसी गद्य-साहित्य के ध्रन्तमंत वे हजारो महावतें
श्रौरमुहावरे हैं, जिनसे इस जनपदकी भाषा भाइचर्यजनक रूप से
समृद्ध । मापा भोर साहित्य की इस लोक-परम्परा के कारण ही
निधनता श्रोर अ्रशिक्षा के वावजूद इस भूमि ने भ्राचार्य ढिवेदी श्रौर
कवि निराला को उनकी रचनाओं के लिये प्रेरणा दी है ।
बालक सूर्पकुमार ने पिता से भ्रच्छी काठी पाई थी । चौदहू बर्प की
अवस्था ही में कसरत-कदती का शौकीन वह एक भच्छा युवक बन गयां।
चैसबारे में, दैश के बहुत से अन्य सागों की तरह, बचपन में थ्याह करना
एक गौरव की चात समझी जाती है। श्रल्प भ्रवस्या में सुर्यवुमार का
मी विवाह हों गया । सासुजी ने लडके को बुलाकर देख लिया, मन बैठा
लिया झौर चात पवकी कर ली । परन्तु यह जानकर कि उनकी विटिया को
दूर परदेश जाना पदेगा, उन्होंने यह शर्त 'रक्ली कि छः महीने वह सासरें
रहेगी झौर छः महीने मायके । दइवसुर उन्हें परदेश भी न ते जायेंगे ।
विवाह बर के योग्य हुआ । स्वर्गीय भनोहरा देदी रूपवर्ती श्रीर सुण-
बती दोनों थी 1 रंग कवि का-सा था, यानी खुलता गेहूँमा, मुह कुछ
घने लम्बे केदा, गाने में अत्यन्त, निपुण, सौ-डेढ़ सौ स्वियों में
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