संस्कृत और साहित्य | Sanskrit Aur Sahithya

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Sanskrit Aur Sahithya by रामविलास शर्मा - Ramvilas Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्९ संस्कृति श्रौर साहित्य कबीर को _ प्रतिभा _ वास्तव में ध्वसात्मक थी । उनके दाशनिक विचार उलसे _हुए हैं और सामाजिक इृष्टि से उनके र्‌दस्यवाद में रचनात्मक तत्व कम है । इसके विपरीत ठलसीदास की प्रतिभा मूलतः रचनात्मक थी 4. विनयपत्रिका के अनेक पदों से देश की वास्तविक दशा पर कठोर प्रकाश पढ़ता है । तुलसीदास ने आपने जीवन में घोर गरीबी के कष्ट -मोसे-के बाल्यकाल में उनकी दशा श्नाथ बच्चो जैसी रही थी । पेट की आग क्या होती है इसे वह झ्रच्छी तरह जानते थे । प्यागि बड़वागि ते बड़ी है झागि पेट की --पह उक्ति उन्हीं की है । हरे रामंचरितिमानस का जो प्रभाव भारतीय समाज पर पड़ा है उस र बहुत कछ लिखा जा चुका है । यह काव्य प्रधानतः एक भुक्त कबि की रचना है परत. भूक्क-की जो मुक्त को भगवान से बड़ा... समझे । राम भी चित्रकूट गये थे श्रौर भरत भी परंतु बादलों ने जैसी शीतल छाया भरत के लिये की वैसी राम के लिये भी नहीं की । ऐसे मुक्त कवि की रचना का जितना प्रभाव भक्त हृदयों पर पड़ा उससे कहीं अधिक उसका प्रभाव सामाजिक व्यवस्था पर पुड़ा । एसुश़ल साम्राज्य जब अपने वैभव की सौमाएँ पू्णरूप से विस्तार कर चुका था उसी समय उस पर दो ओर से झाक्रमणु होने लगे थे-- उत्तर में सिक्खों द्वारा और दल्चिश में मराठों दारा। दक्षिण में इस नये जागरण के नेता थे शिवाजी । वह एक साधारण परिवार में उत्पन्न हुये थे और केवल झ्पनी असाधारण क्षमता के बल पर एक स्वतंत्र राज्य स्थापित कर सके थे । जैसे वह चतुर थे वैसे ही साहसी भी थे पे उन्होंने मराठा किसानों को एक नया जीवन दिया शऔर अपनी उदार व्यवस्था के कारण किसानों के प्रिय हो गये । शिवाजी की सफलता का रहस्य यह था कि उन्होंने किसानों को लाल्लुकदारी जंजीरों से मुक्त किया । मराठा शक्ति के हास का कारण इसी ताल्लुकदारी व्यवस्था का पुनः सिर उठाना था । सिंक्खों का संगठन




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