तत्त्व चिंतामणि भाग 1 | Tatva Chintamani Bhag-1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12.34 MB
कुल पष्ठ :
674
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्ञाचीकी जविवंचनीय स्थिति श्शु
बाद “्साक्षात्कार' होता है, इसीको मुक्ति कहते हैं । फोई जैन
आदि. मतावल्म्बी छोग तो सृत्युके बाद मुक्ति मानते हैं, परन्तु
इमारे वेदान्तके सिद्धान्तमें जीवन्सुक्ति भी मानी गयी है, गृत्युके
पहले भी ज्ञान हो सकता है । इस अवस्थामें उसका शरीर तथा।
शरीरके द्वारा होनेवाल़े कर्म केवल छोगोंको देखनेमात्रके लिये रद.
जाते हैं । उसमें कोई “धर्म” नहीं रहता । यदि कोई कट्दे कि
जब उसमें चेतन ही नददीं रहा तो फिर क्रिया क्योंकर होती है *
इसके उत्तरमें कहा जाता है. कि सम्टिन्वेतन तो कहीं नददीं गया;
व्यष्टि-मावसे इटकर उसकी स्थिति झुद्ध चेतनमें हो गयी । समष्टि-
चेतनकी सत्ता-रुपूतिंसे क्रिया हुआ करती है, इसमें कोई बाधा
नहीं पड़ती । इसपर यदि कोई फिर यह्द कहे कि चेतन तो जड़
पदार्थ और मुर्देमे भी है, उनमें क्रिया क्यों नहीं छोती * इसका
उत्तर यह है कि उनमें क्रिया न होनेका कारण भन्तःकरणका
अमाव है, यदि योगीजन एक चित्तकी अनेक कल्पना करके मुर्दे
या जड़ पदार्थमें चित्तका प्रवेश करवा दें तो उसमें भी क्रियार्जोका
होना सम्भव है. ।
कोई पूछे कि ज्ञानी कौन है * तो इसके उत्तरमें कुछ भी
नहीं कहा जा सकता । यदि दरीरको ज्ञानी कहा जाय तो जड़
शरीरका ज्ञानी होना सम्भव नहीं; यदि जीवको ज्ञानी कहें तो
ज्ञानोत्तरकालम उस चेतनकी “जीव” सज्ञा नह्दीं रहती और यदि झुद्धः
चेतनंको ज्ञानी कंहें तो झुद्ध चेतन तो कभी अज्ञानी हुआ ही नद्दीं |-
इसलिये यह नद्दीं बतढाया जा सकता कि ज्ञानी कौन है
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