टर्की का शेर | Tarki Ka Sher

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Tarki Ka Sher  by गणेशदन्त शर्मा 'इन्द्र' - Ganesh Dant Sharma 'Indra'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्ण टर्की का शेर बुद्धि छुशाप्र थी, वह पढ़ने में सबसे तेज था, स्मरणशक्ति तो द्धत थी और एक हानदार विद्यार्थी में जो-जो गुण होने चाहिए उसमें विद्यमान थे । परन्तु वह जन्मत: ही ऐसे स्वभाव का था कि उसका वह स्वभाव उन दिनों उसका झावशुण समझा जाने लगा था । भरदडपन शाप में ज्याद: था और हेकड़ी मारा करते थे। स्कूल के खेलों में छाप कभी भी भाग नहीं लेते थे । किसी ने छुछ ऐसी वैसी बातें कहीं कि मरने भारने को तैयार । सबसे दुश्मनी हे। गई । एक दिन ्रष्यापक ने किसी 'छपराध पर 'झाप- को शारीरिक दण्ड दिया, बस, फिर क्‍या था भाप बुरी तरह बिगड़ पड़े और उनका सामना भी किया--लात चूँसे भी चलाए | ध्यापक ने और भी पीटा । जब मास्टर पर कुछ वश न चला तब आप गुस्से में क्लाते हुए स्कूल से भाग गए । दूसरे दिन मुस्तफा मियाँ मद्रसे नहीं गए । बहुत प्रयत्न किया गया कि आप मद्रसे जावें, मगर ऐसे छाड़ गए कि ट्स से मस नहीं हुए । उनकी मौसी ने कहा कि छगर इसी मदरसे में पढ़ना है तो में खर्चा दे सकती हूँ । दूसरे रकूल में पढ़ाने के लिए मेरे पास खर्चा नहीं है। उनकी माता ने उन्हें बहुत डॉट, घमकाया, डराया, लेकिन मुस्तफा दी तो ठहरे | अपने जन्मजात स्वभाव को कैसे छोड़ते । साता सिर पटक के रद्द गई, नहीं गए सो नहीं ही गए । अब उनकी माता ने सोच लिया, यह झब नहीं पढ़ेगा, इसलिए इसे एक दूकान करा देना चाहिए । परन्तु उनके चचा ने कददा--“न तो यह दृूकान ही कर सकेगा और न पढ़ेगा ही । इसलिए इसे सेलोनिका के सेनिक विद्यालय में भर्ती करा देना चाहिए। वह विद्यालय सरकारी है उसमें यदि इसने इन्नति




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