छत्रसाल | Chhtrasaal

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देविका प्रसाद - Devika Prasad

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रामचन्द्र वर्मा - Ramchandra Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्द्‌ देवीका प्रसाद । बि०--“ उन छोगोंने वहाँ अनाचार नहीं किया । उन्होंने उन वीसों असु- रॉंसे केवल खडना आरभ कर दिया । अकेले अभिमन्युके साथ जिस प्रकार कौर- वॉने अधर्म युद्ध किया था उसी प्रकार वे वीसों अमर उन युवराजोंसे लड़ने लगे । विमछढेवसे पुरुप होकर भी वह युद्ध देखी न गया, तव भला में किस गिनतीमें थी * अकेले छन्रसाल पर छ असुर अपनी अपनी तलवारे लेकर टूट पढ़ें । उनमेंसे एककी तलवारका धाव भी छत्रसालको बहुत गहरा लग थया । युवराज दरूपति अकेछे ही दस असुरोंसे लड रहे थे । वद्द भयानक सम्ाम देख कर मेने भयसे आँखें वद कर लीं । थोडी देर वाद जव मैंने आंखें खोरलीं तव देखा कि विमलदेव सामने खडे हुए मुस्करा रहे हैं और पास ही खूनमे नहांये हुए चार पॉच असर जमीन पर छोट रहे हैं । प्रधान असुरकी सारी दोखी किर- किरी हो गई थी और वह सिर नीचा किये हुए खडा था । युवराज छत्रसाल और दलपतिराय उसकी मुदकें वौँध रहे थे । मेरी ओर ठेख कर छत्रसालने कह्दा * ढेवीके पूजनका समय हो रहा है | तुम दौड कर लाओ और महाराजसे थोंडी देरके छिए पूजा रोकनेकी प्राथना करो, तव तक हम लोग इस यवन सर- दारको लाकर वहाँ पहुँचते है । * युवराजकी वात सुनते ही मैं वहेसे चढ पड़ी और जल्दी जल्दी यहेँ पहुँची ।* विजयाकी वात समाप्त होते होते मदिरके वडे दाछानके पास ही जयजयकार हुआ 1 जयजयकारकी ध्वनि बडी ही मघुर थी । श्राणनाथ प्रभु इतनी देर तक ' शात होकर विजयाकी वातें सुन रहे थे। परन्तु अब उनसे न रहा गया । तुरन्त ही उनके दिष्य युवराज छ्रसाढ आकर उनके चरणॉपर अपना सिर रखते हुए दिखलाई देते, पर इतनी देर तक उन्होंने अपने प्रेमके जिस आवे- शक्तो रोक रक्‍खा था वद्द अब उनसे रोका न गया । खोयें हुए वालकसे पिठ- नेके समय माताके कोमल मनकी जो स्थिति होती है वही प्रेम-पूर्ण स्थिति प्राणनाथ प्रभुकी भी हुई । बहुत देरसे छूटे हुए वछडेंसे मिलनेके लिए जितनी भातुरतासे गौ आये बढती हैं, उतनी ही आतुरतासे वे बड़े दालानकी ओर बढ़े । उस समय छत्रसाल और उनमें जो थोडासा अतर था, चह अतर अकेले छन्नसाल ही कम करे, यह उनसे देखा न गया । जयजयकारकी प्रतिष्वनि उत्पन होनेसे पहले ही वे मदिरके बडे दालानमें पहुच गये । वहां उनका आणोंसे भी अधिक प्रिय वालक छत्रसाल सजल नेत्रोंसे उनके चरणोकी बूछि छेनेके छिए तैयार खडा हुआ था ।




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