मेरी प्रिय कहानियां | Meri Priy Kahania

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Meri Priy Kahania by आचार्य चतुरसेन - Acharya Chatursen

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्र बौद्ध कहानियां रहा है वे फट गए हैं। यृद्ध ने स्नेह से उसे छुमकारकर कहा--बस श्रब थोड़ी दुर भर निकट ही कहीं गांव या बस्ती मिलते पर ठहरने में सुसीता रहेगा । पर बालिका श्रौर कु पथ चलकर मार्ग में ही एक ऊंची जगह पर बैठ गई । वृद्ध भी निरुपाय हो पास ही बैठ गया । श्रस्थकार में चारों श्रोर से उन्हें घेर लिया 1 कि सहसा बालिका नें चौंककर कहा--पिताजी देखो घोड़ों की टाप को शब्द सुनाई दे रहा हैं बुड्ढें ने उठकर दूर तक हृप्टि करके देखा । सड़क के निकट एक घना घेमले का वृक्ष था जिसके नीचे घोर श्रस्थकार था बृद्ध क्या का हाथ पकड़ वहीं जा छिप । श्राकाद में अब थी बादल घिर रहे थे गौर फिर जोर की वर्षा होने के रंग-ढंग दीख पड़ते थे । वीच-बीच में घिजली भी चमक जाती थी । थोड़ी देर वाद बहुत से सवार वहां तक श्रा पहुंचे । वर्षा भी शुरू हो गई । सवारों ने निश्चय किया कि उस वृक्ष के नीचे झाश्रय लें । दूद्ध भय से वालिका को छाती में छिपाए बूज की जड़ में चिपककर लैस गया । सहूता बि्ली की चमक मे श्रर्वारोहियों ने वृक्ष के लिकट मनुष्य-मुति देखकर कहा--भ्ररे वृक्ष के निकट यह कौन हैं ? वृद्ध वहां थे हटकर चुपचाप खेत में जाने लगा तत्क्षण एक वर्छा श्राकर उसकी छाती को बिदीर्ण कर गया । वृद्ध एक चीत्कार करके धरती पर गिर गया । बालिका जोर से चिल्ला उठी । अध्वारोही दल ने निकट जाकर देखा--मृत पुरुष बुद्ध झौर निरस्व है । पर कन्या को देखते ही बर्छा फेंकने वाले सवार मे कहो--वाह बूढ़े को सार- कर रन मिला इसमें किसीका साका नहीं है ? बालिका भय और शोक से चिल्ला उठी 1 सश्वारोही ने उसकी परथा न कर उसे उठाकर घोड़े पर रख लिया और वे श्राये बढ़े । वैभवदालिनी वैशाली का जो ्वरेष्ठि-चत्वर नामक बाज़ार था । उसके उत्तर कोण पर एक बिद्याल प्रासाद जिसके गुम्बजों का श्रकाश राथि को गड़ा पार से शी दीखता था । बाहर का सिंहडार विशाल पत्थरों का बनाया गधा था जिसे उठाना और जोड़ना देत्यों का ही काम हो सकता था । इन पत्थरों पर स्थापत्यकला थौर शिल्प की सुकष्म बुद्धि खर्च की गई थी । छ्योढ़ी पर गहरा हरा रंग किया हुध्ना था श्र ऊंचे महराबदार फाटक पर फुलों की गुधी हुई




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