कलम, तलवार और त्याग भाग 2 | Kalam, Talwar Aur Tyag Bhag 2

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Kalam, Talwar Aur Tyag Bhag 2 by प्रेमचन्द - Premchand

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प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्‍होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्‍यासों से परिचय प्राप्‍त कर लिया। उनक

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्र राजा टोडरमल हाजिरी और जाँच के समय घोडों को नियत संध्या इधर उधर से माँग-जॉचकर दिखा देते । जत्र यह वला सिर से टल जाती, तो फिर वही ढर्रा पकड़ लेते । टोडरमल ने इसका भी प्रतिकार किया कि जाँच के समय घोडों पर दाग लगा दिया जाता, जिसमें घोखेवाज़ी का कोई मौका न रहे । सिकन्दर लोदी के जमाने तक हिन्दू लोग आम तौर से फारसी या अरबी न पढ़ें थे, इन्हें “म्लेच्छ विद्या' कहते थे । टोडरमल ने प्रस्ताव किया कि संपूर्ण भारत साम्राज्य के सब दफ्तर फारसी में हो जाएँ । पहले तो हिन्दू इस योजना से चौंके, पर टोडरमल ने उनके दिलों में यह बात अच्छी तरह बैठा दी कि राजा की भापा जीविका की कुंजी है ऊँचे पद, अधिकार भौर सम्मान चाहते हो, तो राजभापा को सीखकर पा सकते हो । अकबर ने भी सहारा दिया । योजना चल निकली और कुछ ही साल के अरसे में बहुत हिन्दू फारसीदाँ हो गए । इस दृष्टि से हम कह सकते हैं कि टोडरमल उद्ूँ भाषा का पूर्व पुरुष है, क्योंकि यह उसी की टूरदर्शिता का फल है कि हिन्दुओं में फारसी का चलन हुआ । फारसी शब्द मामूली घरेलू बोलचाल में प्रयुक्त होने लगे, भर इस प्रकार रेखते* से उदं को जड़ मजबूत हुई । टोडरमल गणना शास्त्र -हिसाव-किताब-पकी विद्या में अपने समय का सर्वमान्य आचार्य था । पहले शाही ५ ,. , *ैंदर्दू का पहला नाम, जिसका अर्थ है मिलो-जुलो खिदड़ी भावा, उू भाषा अरबी, फारसी, तुर्को, हिन्दी आदि शब्दों को खिचड़ी है । श्र




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