वंश भास्कर महाचम्पू खंड 8 | Vansh Bhaskar mahachampu Vol. 8
श्रेणी : इतिहास / History, समकालीन / Contemporary
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
44.77 MB
कुल पष्ठ :
748
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्री गणेशायनम अथ नवम राशि प्रारम्भ अथ विष्णुसिंह चरित्रमू शुद्धा5पश्नशभाषा गीति य गयाणणु बाणी हिमकुंदचंद्रिमाधवला । एड कव्बं ताह असद्रलु थवणु हरउ करउं॥१ ॥ हाथी के मुखवाले गणेश की जय हो मोगरा चाँदनी और बर्फ के समान उज्ज्वल कांति को धारण करने वाली सरस्वती की जय हो। ये दोनों देव ही काव्य के कारण हैं अर्थात् जिनको कृपा से कविता संभव है । इन दोनों के जैसा अवर कोई नहीं यह मान कर मैं ग्रंथकार सूर्यमल्ल मीसण मिश्रण सर्वप्रथम इनकी स्तुति करता हैूँ। दोहा रणसूरा मणउज्जला जणवल्लहु अणमाणु। अम्हारा णमउं जण गुढक्करि कव्वनिहाणु ॥२ ॥ जिनके समान युद्ध में वीर मन का उज्ज्वल और जन-जन का दुलारा अन्य कोई नहीं उनको अपने पिता को मैं नमस्कार करता हूँ जो गूढ़ काव्य रचना के खजाने हैं । गीर्वाणभाषा अनुष्ठ॒ब्युग्मविपुला तुरीौयांय सदास्पश्यज्जाग्रत्स्वप्न सुषुप्तिषु। आत्मारामं स्ववप्तारं चंडीदानं नमाम्यहम् ॥३ ॥ जो सदा अपनी जाग्रत स्वप्न और सुषुप्ति तीनों अवस्थाओं में तूर्यावस्था को देखते हैं अर्थात् समाधि की स्थिति में रहते हैं । ऐसे ब्रह्मानन्द स्वरूप चण्डीदान नामक अपने पिता को इस राशि की रचना के आरंभ में प्रणाम करता हूँ। टिप्पणी - छंद संख्या एक और दो का संस्कृत अनुवाद निम्न प्रकार होगा-सम्पादक १. जयति गणेशो गजाननो वाणी हिमकुन्दचन्द्रिका धवला। एते कारयत काव्य तयोरसदृशं स्तवनमह करामि ॥१ ॥ र. रणशूरा मनस्युज्ण्वला जनवल्लभा अप्रमाणा । वयं नमामो ये गृढाकृतिकाव्यनिधाना ॥२ ॥ वंशभास्कर /५६७९
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