मनुष्य जीवन की सफलता | Manushya Jeevan Ki Safalta
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11.72 MB
कुल पष्ठ :
370
श्रेणी :
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No Information available about श्री जयदयालजी गोयन्दका - Shri Jaydayal Ji Goyandka
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रीचारद और श्रीविष्णुषुसणके कुछ महत्त्वपूर्ण विषय. ७
बनता; क्योंकि जब एकका कल्याण हो सकता है; तब हजारका भी
दो सकता है; छाखका भी हो सकता है एवं सबका भी हो सकता
है; यह न्याययुक्त और बात है । इसका विरोध नहीं
किया जा सकता । एक मनुष्य छाखों-करोड़ों जन्मोसे संसार-चक्रमे
भटकता हुआ आ रहा है, उसकी मुक्ति आजतक नहीं हुई; तो भी
साधन करनेसे उसकी मुक्ति हो सकती है; क्योंकि साधनद्वारा मुक्ति
होती है, इस विषयमे सभी शात्र सहमत हैं । फिर हम यह कैते
कह सकते हैं कि “छाखों-करोड़ों ब्रह्मा बीत गये, अभीतक सबकी
मुक्ति नहीं हुई तो अब भी नहीं हो सकती ।” हमारा यह कथन
अयुक्त और शाखत्रिरुद्ध होगा; क्योंकि यदि मुक्ति नहीं होती तो
उसके लिये लोग प्रयन्न क्यों करते तथा शाखोंमें जो भक्तियोग,
ज्ञानयोग, कर्मयोग; '्यानयोग आदि साधनोंद्वारा मुक्ति गयी
है, वह भी अप्रमाणित होती, फिर ऐसे अनेकों उदाहरण भी मिछते
हैं । घुव, प्रह्लाद,; झुकदेव, वामदेव, अम्बरीभ आदि अनेक पुरुप मुक्त
हुए है । इसलिये यह बात सिद्ध हो जाती है कि जब एक पुरुष
मुक्त हो सकता है; तब हजारों; लाखों, करोड़ों भी मुक्त हो सकते
हैं | इस न्यायसे सभी मुक्त हो सकते है । अतः जो बात आजतक
नहीं हुई, वह भत्रिष्यमे नहीं हो सकती; ऐसा कइना अयुक्त है ।
आर्प ग्रन्योमि कहीं भी ऐसा नहीं कहा है कि सबका कल्याण
नहीं हो समता; तब मिर सबका कल्याण नहीं हो सकता--रेसा
हम किस आधारपर माने । कहें कि “जत्र राजा कीर्तिमान्-
जैसे धर्मात्मा भक्त भी सबका उद्धार नहीं कर सके तो दूसरा कौन
कर सकता है!” तो यह कहना भी उचित नहीं है; क्योंफियद्द तो
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