मनुष्य जीवन की सफलता | Manushya Jeevan Ki Safalta

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Manushya Jeevan Ki Safalta by

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रीचारद और श्रीविष्णुषुसणके कुछ महत्त्वपूर्ण विषय. ७ बनता; क्योंकि जब एकका कल्याण हो सकता है; तब हजारका भी दो सकता है; छाखका भी हो सकता है एवं सबका भी हो सकता है; यह न्याययुक्त और बात है । इसका विरोध नहीं किया जा सकता । एक मनुष्य छाखों-करोड़ों जन्मोसे संसार-चक्रमे भटकता हुआ आ रहा है, उसकी मुक्ति आजतक नहीं हुई; तो भी साधन करनेसे उसकी मुक्ति हो सकती है; क्योंकि साधनद्वारा मुक्ति होती है, इस विषयमे सभी शात्र सहमत हैं । फिर हम यह कैते कह सकते हैं कि “छाखों-करोड़ों ब्रह्मा बीत गये, अभीतक सबकी मुक्ति नहीं हुई तो अब भी नहीं हो सकती ।” हमारा यह कथन अयुक्त और शाखत्रिरुद्ध होगा; क्योंकि यदि मुक्ति नहीं होती तो उसके लिये लोग प्रयन्न क्यों करते तथा शाखोंमें जो भक्तियोग, ज्ञानयोग, कर्मयोग; '्यानयोग आदि साधनोंद्वारा मुक्ति गयी है, वह भी अप्रमाणित होती, फिर ऐसे अनेकों उदाहरण भी मिछते हैं । घुव, प्रह्लाद,; झुकदेव, वामदेव, अम्बरीभ आदि अनेक पुरुप मुक्त हुए है । इसलिये यह बात सिद्ध हो जाती है कि जब एक पुरुष मुक्त हो सकता है; तब हजारों; लाखों, करोड़ों भी मुक्त हो सकते हैं | इस न्यायसे सभी मुक्त हो सकते है । अतः जो बात आजतक नहीं हुई, वह भत्रिष्यमे नहीं हो सकती; ऐसा कइना अयुक्त है । आर्प ग्रन्योमि कहीं भी ऐसा नहीं कहा है कि सबका कल्याण नहीं हो समता; तब मिर सबका कल्याण नहीं हो सकता--रेसा हम किस आधारपर माने । कहें कि “जत्र राजा कीर्तिमान्‌- जैसे धर्मात्मा भक्त भी सबका उद्धार नहीं कर सके तो दूसरा कौन कर सकता है!” तो यह कहना भी उचित नहीं है; क्योंफियद्द तो




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