कीर्ति गाथा | Kirti Gatha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका सर्वप्रथम जयाचार्य के चरणों में विनम्र प्रणाम ! यों परम्परा के प्रतिनिधिपुरुष होने के नाते उन्हें हजारो वार प्रमाण किया है, पर कीति गाथा पढ़ने के वाद उन्हे एक प्रबुद्ध-प्रणाम करने की इच्छा होती है | साधा- रणतया पद की उंचाई पर आरूढ व्यक्ति को घरातल पर जन्म लेने वाली घटनाओं का सम्यग-ज्ञान, सम्यग-दर्शन नही हो पाता। पर जयाचाये के पास वह्‌ स्फटिक राडार-दृष्टि है, जो अपने परिसर मे घटने वाली सामान्य से सामान्य विशेषता को भी प्रतिविम्बित कर सकती है । यो हर नेता का पारखी होना वहुत जरूरी होता है । इस दृष्टि से कुछ विशिष्ट अनुयायियों का गुणगान अनिवायें अपेक्षा बन जाती है, पर जयाचार्य ने कीति गाथा मे न केवल कुक गण्यमान्य संत-सतियों का ही उन्मुक्त स्तुति-गान किया है, अपितु सामान्य से सामान्य विशेषता को भी अपनी कलम की नोक पर उठाया है । सारे जेन इतिहास मे इस दृष्टि से जयाचायं अकेले दिखाई देते है । कुछ लोगों को कमं से वन्धन की गन्ध आती है, पर भगवान महावीर ने 'निर्जरा' शब्द के द्वारा कर्म को मुक्ति की राह बताई है। हो सकता है, कर्म में योग रूप कोई सूक्ष्म वन्धन रहा हो, पर इसमें कोई शक नही कि वन्धन का मुख्य कारक कषाय है। जयाचाये में कषाय की अल्पता से ही इतनी विनम्रता प्रकट हो सको कि छोटे-से-छोटे साथु-साध्वी को भी वे अपने श्रद्धा-जल से अभिषिक्त कर सके । निश्चय ही मुमुक्षा के विना यह कभी सम्भव नही हो पाता । 'कीति गाथा” मे ३ आचायें, ४ साध्वी प्रमुखा, ५६ सन्त तथा ५५ साध्वियो के स्तुति-गीत संकलित किए गये है । इनके अतिरिक्त अन्य अनेक साध-साध्वी, श्रावक तथा श्राविकाओं का भी प्रासंगिक उल्लेख জা है। मूल भाग के लेखक जयाचार्य स्वयं है तथा परिशिष्ट भाग में अन्य लोगों की रचनाओं को भी संकलित कर लिया गया है। इतिहास-सुरक्षा की दृष्टि से चरमोत्सव गीतिकाए, शासन-विलास, सतगुणमाला तथा आर्या-दशेन आदि अनेक प्रकीर्ण रचनाएं भी इसमें संकलित कर ली गई है। कुछ वण्य आत्माओं को उनकी अवगाहना के अनुसार लम्बी काव्य- छाया प्राप्त हुई है, तो कुछ सामान्य-से-सामान्य विशेषता को भी समादृत किया गया है। यद्यपि तेरापंथ का इतिहास इनका मुख्य प्रतिपाद्य विषय रहा है, पर कथ्य और शिल्प की दृष्टि से भी इनमे से कुछ रचनाए काफी




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