श्रीमद्भागवद्गीता | Shreemadbhagwadgeeta

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Shreemadbhagwadgeeta by हरिकृष्णदास गोयन्दका - Harikrishnadas Goyndka

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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. ल्यादिशुणगणाविष्कारेण अक्रूरमा-| सौशील्यादि गुणसमूहोंको प्रकट करके राकारादीन्‌ परमभागवताच्‌ कत्वा | अक्रूर, मालकार आदिको परम भक्त ` पाण्डतनययुद्धप्रोत्साहनव्याजेन पर-| एवं पडत अनक युद्धके ` | न | लिये प्रोत्साहित करनेके बहाने परम मपुरुषथरक्षणमाक्ष पुरुषाथ मोक्षके साधनखूपसे वेदान्ते ` न्तोदितं खविषयं ज्ञानकमायुगृहीतं | | वणित ॒ज्ञान-कर्मके द्वारा साध्य ` : भक्तियोगम्‌ अवतारयामास | ৰ खविषयक भक्तियोगको प्रकट किया | 4 तत्र पाण्डवानां इरूणां च युद्धे | वहाँ ( इरुकषतरमे ) जब कौख ओर ` | | पाण्ड ग तयारी ह সান स॒ मगान्‌ पुरुषोत्तमः वमि य॒द्धकी तयारी हो चुकी थी, 2: तिमत | तव॒ जगत्का उपकार करनेके स्यि : सर्वेश्वरेथधरों जगदुपक्ृतिमत्य জা- | বন্ধন धारण करनेवाले, । भितबत्सस्यविवक्चः पार्थ रथिनम्‌ | इश्रोके भी इश्वर भगवान्‌ पुरुषोत्तम ४ आत्मानं च सारथि सर्वलोकसाक्षिक | श्रीकृष्णचनद्रने ररणागत-वतसल्तासे | किरा होकर सव लेगोके सामने अर्जुन ` \ (त 777 धि को रथी बनाया ओर खयं सारथि बने। ` एपम्‌ अजुनख तौ उत्कषं ज्ञाता | ` इस प्रकार अज्जुनकी उत्कृष्टता वॉत्मना अः न्धा धतराष्ट्र: | जानकर भी सब प्रकारसे अन्धे घृतराष्ट्रने .. संजय | दुर्योधनका विजय-संवाद छुननेकी इच्छा- = ससज धृतराष्ट्र उवाच ` ` युयुत्सवः मकुबेत संजय ॥ १ ॥




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