अमर भारती | Amar-bharti

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अमर चन्द्र जी महाराज - Amar Chandra Ji Maharaj

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विजय मुनि शास्त्री - Vijay Muni Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ अपर भारती-सदशेन ७ হী सके; ऐसे दी विचारोत्तेजक, उदात्त एव प्रेरणाप्रद विचारों से इत्पोरित होकर ही सन्त आत्म चिन्तन को जानतिक विकासाये उपस्थित जन के समक्ष मु हू सोलता दै। उसे कहने फे लिए कुछ नहीं कदना, किन्तु, आत्मपीड़ा प्रसवमूलक मावना से दुःखी जन जीवन के फार ही शद कहना है, सित निषि दै उसी को वितरणं करना है। बाणी मव क प्रदर्शन उसका कर्तव्य नहीं । उसका करतवय है जन मन फा सवौगीण उन्नयन । बह तनोचलति में विश्वास नहीं करता, पद मनो नवि की कामन्य करते हुए लोकोत्तर आनन्द का अउुभव करता है | इसी लिए जनता के हृदय सिहासन पर सन्त का स्थान अभिट है, क्योंकि वह परिस्थितिजन्य प्रवाह में प्रवाहिन नहीं होता, प्रवाइ फो मोड़ देता है । उसकी वाणी व्यथथ नहों जावी। बह विक्रार मे सस्र उत्पन कर, व्यक्ति को दी नहीं, जीवमाय फो परिप्छृत कर सुदृढ़ अमर राष्ट्र फा निमोण करता है। अनुमव इस बात का साला है कि बाणी और विचारों के वाघ्तविक सोन्दय में निखार तभी आता है जब कि ब कठोर से कठोरतम साधनाजीवन की प्रयोग- शाक्ता यें दलकर निकलं । विपत्तियों में मी जो स्रम्पत्ति फा अउुभव करता दे, इसी का वाचा बल साधनामूलक जावन का यथार्थता का श्रलुभव करा सकता है । जीवनविकास पर विचार करने का अधिकार केषल ऐसे ही व्यक्तियों को है, जो स्वय प्रविकृत्ष वादाबरण में पत्र कर भी अनुकूल तत्वों की सृष्टि कर स्वान्च सुछ फा अनुभव कर सके | काक्ष द्वार कवलित दोना




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