पाली प्रबोध | Pali Prabodh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
26 MB
कुल पष्ठ :
160
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)संधि प्रकरण ७
( & ) एकार से पर स्वर वर्ण (प्रायः अकार) रहने से कभी-कभी
एकार का लोप हो जाता है,और परवर्ती हस्व श्रकार হী हो जाता है--
मे+-्यं = म्थायं; ते -- अहं - त्याहं ; पब्बते + अहं ८ पब्चत्याहं ।
( १० ) दीघ स्वर से पर एवं होने से कभी-कभी एव के एकार के
क
स्थानम विकल्प से “रि' आदेश होता है, और দুজহ্িজ दीघं स्वर
हस्व हो जाता है-
यथ! -]- एव = यथरिव, यथेव ।
तथा ~ एव = तथरिव, तथेव ।
कभी-कभी हस्व स्वरसे पर इव अथवा एवं आने से उसे रेफ
का आगम होता है-- ।
विज्जु + इव = विज्जुरिव । सञ्भि ~+- एव = सन्भिरेव !
(११) कभी-कभी केवल उच्चारण सौकथं के क्लिये या कभी-कभी चद्
के अनुरोध से व्यंजन वर्ण से पूर्व स्थितहवस्व स्वर दीर्घ हो जाता है--
सम्म ~[- धम्मो = सम्माधम्मो । ( सम्यग्धमं : )
सुनि 1 चरे ~= सुनौचरे ।
खंति+परमं > खंतीपरम ।
जायति-+सोको = जायतीसोको ।
(१२ ) साधारणतः इदू शब्द तथा एवं शब्द पर में रहने से
उच्चारण सौकर्य के किये मध्य में यकार का आगम होता है--
मा+इदं = मयिदं ; न+इदं = नयिदं ; न ~ इमानि = नयिमानि ।
नव+इमे = नवयिमे ; न ~+ एव = नयेव }
तेसु + एव = तेसुयेव; सो ~- एव = सोयेच ¦
( १३ ) कभी-कभी स्वर वं परमे रहने से पूर्ववृता स्वरको
मकार का च्रागम होता है- #
लघु ~+ एस्सत्ति = लघुमेस्सत्ति ।
कसा + इव = कसामिव । `
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