पाली प्रबोध | Pali Prabodh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संधि प्रकरण ७ ( & ) एकार से पर स्वर वर्ण (प्रायः अकार) रहने से कभी-कभी एकार का लोप हो जाता है,और परवर्ती हस्व श्रकार হী हो जाता है-- मे+-्यं = म्थायं; ते -- अहं - त्याहं ; पब्बते + अहं ८ पब्चत्याहं । ( १० ) दीघ स्वर से पर एवं होने से कभी-कभी एव के एकार के क स्थानम विकल्प से “रि' आदेश होता है, और দুজহ্িজ दीघं स्वर हस्व हो जाता है- यथ! -]- एव = यथरिव, यथेव । तथा ~ एव = तथरिव, तथेव । कभी-कभी हस्व स्वरसे पर इव अथवा एवं आने से उसे रेफ का आगम होता है-- । विज्जु + इव = विज्जुरिव । सञ्भि ~+- एव = सन्भिरेव ! (११) कभी-कभी केवल उच्चारण सौकथं के क्लिये या कभी-कभी चद्‌ के अनुरोध से व्यंजन वर्ण से पूर्व स्थितहवस्व स्वर दीर्घ हो जाता है-- सम्म ~[- धम्मो = सम्माधम्मो । ( सम्यग्धमं : ) सुनि 1 चरे ~= सुनौचरे । खंति+परमं > खंतीपरम । जायति-+सोको = जायतीसोको । (१२ ) साधारणतः इदू शब्द तथा एवं शब्द पर में रहने से उच्चारण सौकर्य के किये मध्य में यकार का आगम होता है-- मा+इदं = मयिदं ; न+इदं = नयिदं ; न ~ इमानि = नयिमानि । नव+इमे = नवयिमे ; न ~+ एव = नयेव } तेसु + एव = तेसुयेव; सो ~- एव = सोयेच ¦ ( १३ ) कभी-कभी स्वर वं परमे रहने से पूर्ववृता स्वरको मकार का च्रागम होता है- # लघु ~+ एस्सत्ति = लघुमेस्सत्ति । कसा + इव = कसामिव । `




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