क्रिया कलाप: | Kriya Kalap

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : क्रिया कलाप: - Kriya Kalap

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पन्नालाल सोनी -Pannalal Soni

Add Infomation AboutPannalal Soni

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( १० ) उल्ले ख कहीं भक्तियों के प्रारम्भ में और कहट्दीं उनकी टिप्पणी में कर दिये गये हैं। सिद्धभक्ति से लेकर नन्दीश्वरभक्ति तक की भर्तियां के सम्बन्ध में वे ही टीकाकार लिखते हे--“मसुंस्कृता! सवी भक्‍तयः ` पादपृष्यस्वामिक्रताः प्राकृतास्‍्तु कुन्दकुन्दाचायेकृता:” । इस पर . से मालूम पड़ता है. कि सिद्धभक्ति श्रतभक्ति, चारित्रभक्ति, योगि भम्ति, आचार्यभक्ति, निर्वाशभक्ति ओर नन्दीश्वरभक्ति ये सात सस्कृत भक्तियां पादपृज्यस्वामी कृत है. और प्राकृतसिद्धभक्ति, प्राकृत प्तभक्ति, प्राकृतचारित्रभक्ति, प्राकृतयोगिभक्ति और प्राकृत आचाय- भक्ति ये पांच भक्तियां कुन्दकुन्दाचाय-प्रणीत हैं. । प्राकृतनिवाणशभक्ति का समावेश इस टीका में नहीं है, अतः बह कुन्दकुन्दाचाये-प्रणीत है या और किसी आचार्य द्वारा प्रसीत हं यह हम निश्चित नहीं क सकते | इसके अलावा शेष भक्तियां भी किनकी बनाई हुई हैं यह भी नहीं! कह सकते ¦ इतना कट्‌ सकते हैँ. कि छीटी बड़ी सभी भक्तियां तेरहवी शताब्दी स पहले भी थीं। शान्त्यट्रक भी पादपूज्यकृत है। संभवत: पादपुज्य शब्द का तात्पय पृज्यपाद देवनन्दी से है । टी का का र--- भक्तियों के टीकाकार प्रभाचन्द्र नामके आचार्य हैं। इस नामके कई प्रौढ़ विद्वान आचाये द्वो गये हैं, भट्टारक भी इस नाम के हुए हैं। उनमें से कौन से प्रभाचन्द्र क्रियाकलाप टीका, सामायिक टीका और प्रतिक्रमण टीका के का हुए हैं और किस समय वे इस धरातल को समलंकृत कर चुके हैं। यह निश्चय यथेष्ट साधन ओर शीघ्रता के कारण हम नहीं कर सके हैं । इतना अवश्य कह सकते हैं कि उक्त सामा- यिक पाठ में अनगारधर्मामृत और सागरघधमांम्त के ये दो पद्म पाये जते है योग्यकालासनस्थानञरुद्रावर्वशिरोनतिः । विनयेन यथाजातः ृतिकमोमल भजेद्‌ ॥




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now