रीतिकालीन हिंदी कविता | Ritikalin Hindi Kavita

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रीतिकालीन साहित्य और उसकी विशेषताएँ ९ गई। इन दोनों में भी नायिका: के प्रति कवियों का अधिक आकर्षण रहा ! फछुतः जाति, कर्म, गुण, देश, वयक्रम, शीलर, अंग-रचना, कुल आदि आधारों पर वहुसंख्यक तथा विविध रूपिणी नायिकाओं के लक्षण ओर उदाहरण प्रस्तुत किए गए । रतिश्ाव की उद्दीष्ति के लिए प्रकृति का साहचर्य आवश्यक मानकर उसे भी उद्दीपन विभाव के अच्तगंत घसीटा गया। बनस्थछी, गृहाराम, चन्द्र, नदीतट आदि प्रकृति के मनोरम तत्त्वो; संयोग ओर वियोग कौ स्थितियों में इनकी सुख-दुखात्मक प्रतिक्रियाओं; एवं पदऋतुओं, तथा बारहमासों में इनके क्षण-क्षण परिवर्तित स्वरूपों का यथार्थ-काल्पनिक, स्वाभाविक-अलंकारिक और प्रत्यक्षानुभवआधारित-परम्परा-ग्रहीत वर्णन भी प्रचुरता कै साथ हुमा ! शगार रस^को व्यापकता पर्‌ ध्यान रखकर संयोग की ओौचित्य तथा अनौचित्य पूणं अनेक स्थितियों कौ कल्पना की गई 1 वियोग व्यापार की व्यापकता-पूर्व राग, मान, प्रवास तथा मृत्यू कौ दज्ञागो में दिखाई गईं। कभी कभी पूर्वराग के अन्तर्गत और अधिकतर प्रवास-दशा में विरह की ददो अवस्थां के मार्भिक-ऊहात्मक दुश्य चित्रित किए गए 1 तापाधिक्य ओर कृशता को विरह का अनिवायं परिणाम समक्चकर इनके वर्णन की ओर विशेष रुचि दिखाई गई । नायक-नायिकाओं का पूर्वराग की स्यित्ति मेँ रागो- द्भव एवं परस्पर मिन कराने के लिए, मान की स्थिति में अनेक युवितयौं द्वारा उसे भंग कराने के लिए; प्रवास की स्थिति में सान्त्वना देनेके किए और इसी प्रकार जीवन की सुखद स्थितियों में श्रृंगार एवं अंग रचना से लेकर परेम व्यापार कम अनेक मनोहर योजनाओं को सफल वनाने के छिए अंतरंग- वहिरंग सखियों और दूतियों की उद्भावना करनी पड़ी । इस प्रकार नायक- नाविका भेद, चऋतुवणेन, श्युंगार कौ संयोग-वियोग दशाओं का विस्तृत वर्णन तथा सखी और दूतियों की कल्पना, ये सभी श्यंगार-विवेचन के अनिवार्य अंग मान छिए गए। ॥ श्ंगार की प्रमुखता को अनावश्यक विस्तार देकर कभी कभी कुछ कवि महोदयों ने उसी के भीतर अन्य सभी रसों का समावेश करना चाहा | इस प्रकार एक अस्वाभाविक एवं विचित्र आयोजन सामने आया | झूंगार की




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