प्राचीन भारतीय साहित्य | Prachin Bhartiya Shahitya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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३ धमे -प्रवणता--रृत्र शेलीो--लोक-कथाएं ३ ही नहीं, तिपिटक के उपदेष्टा बौद्धो ने ओर, समय-समय पर भारत में भने वाले, अन्यान्य धामिक सम्प्रदायोंने भी दिया है । इन समी सम्प्रदायो का अपना- अपना--सूक्तात्मक, यज्ञतन्त्रात्मक, मन्त्र, उपाख्यान, स्तोत्र, उपदेश, कल्पशास्तर, घमंशास्त्र ओर कर्मकाण्ड तथा योगसाधनापरक-- प्रभूत व।डमय है । ओर इस वाडमय में राष्ट्र की इतनी अमूल्य सम्पत्ति भरी पड़ी है कि उसकी उपेक्षा प्राग- तिहासिक धमं का कोई भी गवेषक नहीं कर सकता । धार्मिक व।डमय फी यह्‌ परम्परा आज भी खत्म नहीं हो गई । कितनी ही सहखराल्दियों मे प्रवहमान वीर- काव्य की घाराएं संगृहीत होकर, अन्त में, महाभारत और रामायण का रूप धारण कर गई। मध्ययूगीन भारत के कवियों ने इन दोनों महाकाव्यों के उपाख्यानों को लेकर स्वतन्त्र महाकाव्य रचे; महाभारत ओौर रामायण लोक-वाडमय के, लोक- जीवन के, स्वेभाविक प्रतिरूप थे; परतर महाकाव्यों में वहां कुछ छत्रिमता, कुछ अलकारवृद्धि, कुछ अ-प्रकृतिकता का निवेश प्रत्यक्ष है । इन काव्यो कौ छृत्रिमता प्रायः सीमोल्लंवन भी कर जाती हं (जो कि पाश्चात्य अभिरुचि को संभवतः अभिमत नहीं हो सकता) ; कुछ हौ, भारतीय कवियों ने पर्याप्त गीतिकाव्य, नाटक आदि विश्वं को उपहूत किए ই जिनकी अनुभूति की उद्रल्ता तथा नाटकीय नव-कल्पना यूरोप के वत्तंमान साहित्य कौ सुन्दरतम कृतियों को तुलना मे किसी भी अंश मे कम नहीं उतरती । सूत्र शरी में तो, विशेषतः, भारतीय विद्वानों ने वह निषुणता प्राप्त कर ली थी जिसकी मिसाल दुनिया में और कहीं दुर्लभ है। भारतवर्ष परीकथाओं और पशुकथाओं की मूलभूमि भी है। इन भारतीय परीकथाओं की, पशुकथाओं की, तथा गद्यात्मक आख्यान-संग्रहों की--विश्व-साहित्य के इतिहास को देन कुछ कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। अनुसन्धान में परीकथाओं की मूलभूत स्पन्दनाओं का ओर उनकी देशदेशान्तर यात्राओं का एक अपना-ही पृथक्‌ विभाग अपिवा अध्याय है जिसका महत्व आज वेनफी के प॑चतन्त्र-सम्बन्धी मौलिक अनुसन्धानं की कृपा से सुनिरिचत हो चुका है । किन्तु भारतीय मनोमय की यह एक निजी विशिष्टता ही है कि वह्‌ विशुद्ध कलाकृतियों मे तथा शास्त्रीय वाडमय में कोई विभाजन-रेखा नहीं खींच पाता । भारत में विशुद्ध साहित्य मे जौर नीति के दोहो मे भेद कर सकना असम्भव है । जो चीज हमें परीकथाओं और पशुकथाओं का एक संग्रह-मात्र रूगती है स्वयं भारतीय उसे युगो से' नीतिशास्त्र और धर्मशास्त्र के संक्षिप्त संस्करणों' के रूप में स्वीकृत करते आए हैं। इसके अतिरिक्त, इतिहास को और जीवन-कथा को लेकर भारत में, कवियों को छोड़ कर, अन्य किसी ने कुछ लिखा ही नहीं--इतिहास और जीवन- कथा भारतीय वाङ्मय मे महाकाव्यं के ही एक अंग माने जाते हैं; और, ना ही--- भारतीयों में गद्य और पद्य को दो पृथक्‌ वृत्तियां मानने की कोई प्रथा है। साहित्य में




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