खुले आकाश के नीचे | Khule Akash Ke Neeche

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Khule Akash Ke Neeche by नमिता सिंह - Namita Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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एक निर्णय / 15 से चाहा था | तुम्हारी रिब्तता और शुून्यता को भरूंगी ( मुझें मालूम था फि तुम उन लोगों में से हो, जो विद्या प्रेम किये जिंदा यही रह सकते। अपने आपको सपूर्ण प्यार ओर विश्वास के साथ किसी को दे देता तुम जैसे लोगो की सबसे सहज सुरक्षा होती है*““और मैंने सोच लिया कि मैं तुम्हारे व्यवितत्व के खंडित भागों को उठाकर सहेजूगी। उसे संवारूगी तुम्हारे आत्मविश्वास को मजबूत करूंगी, जो केवत भीड़ के सामने अभूतपूर्व था, लेकिन व्यक्तिगत और भावनात्मक स्तर पर ब्रिल्कुत खोखला। मैंने तुम्हें जबरदस्ती अपने निकट आने को मजबूर किया । तुमने शुरू में मुझे भी अपने वाकूचातुर्य से नोचा दिखाने की कोशिश की ! तुमने মহ सिद्ध करना चाहा कि मेरा सोचना, मेरी मान्यताएं, मेरे सामाजिक मूत्य वहत संस्कारौ, বন্দিঘানূর্মী সী জীব্রল है 1 मे चुपचाप, मन-दौ-मन मूस्कराती, तुम्हें बिवा किसी विरोध के सुनती रही। मैंने तुम्हें हरचंद यह विश्वास दिलाने की कोशिश की कि मैं तुम्हे केवल इसलिए नही सुनती कि मुझे तुमसे कोई स्वायं है या कामना है, वरन्‌ र केवले तुम्हारी बोद्धिकता से, तुम्हारे मौलिक चितन से प्रभावित हू । तुम मालती से अक्सर मेरे बारे में कहा करते थे कि में बहुत स्नॉब और इगोईस्ट हूं और मेरे स्वभाव की रिजर्वमेस के पीछे कड़ा दंशभ और कभी न झुकने वाली मनोवृत्ति है'** तुमने अब यू पाया कि में बहुत भावुक भी हूं कौर जहा तक बौद्धिकता का प्रश्न है, में मस्तिष्क से तुम्हारे आगे आत्मसमर्पण करती हूं । जिस दिन तुमने यह महसूस किया, त्भी से तुम एकवारगी मेरी ओर झुक गये | तुमने सपनी समस्त बाह्य प्रकृति के द्वारा, अपने स्वभाव या चेतनाशील विचार- धारा के द्वारा मुझे जीत लिया था और अब तुम्हे अपने भीतर के अति कमजोर और कराहते इंसान के लिए एक सहारा बहुत जरूरी चाहिए था নই सहारा, जो भावना का था, परस्पर विश्वास और सहानुभूति का था, संवेदना और निकटता का था । तुमने जबरदस्त दोहरे व्यक्तित्व को ओढा हुआ था। बिना सहारे के, बिना भधुर प्रेम-संबंध के तुरु आगे नही वढ़ सकते थे, लेकिन तुम्हारा अहं इतना मजबूत हो चुका था कि तुम्हे इस बात को कभी चेतन रूप में स्वीकारने नहीं देता था। तुम्हारे स्वभाव में इस कदर सतर्कता और




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