श्री तीर्थंकर-चरित्र [द्वितीय भाग] | Shree Tirthkar-Charitra [Dwitiya Bhaag]

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Book Image : श्री तीर्थंकर-चरित्र [द्वितीय भाग] - Shree Tirthkar-Charitra [Dwitiya Bhaag]

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about बालचन्दजी श्रीश्रीमाल - Baalchandji Shreeshreemal

Add Infomation AboutBaalchandji Shreeshreemal

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
५ [ भगवान श्री विमलनाथ सनं बखालकार त्याग, भगवान मे पंचमुष्टि लोच किया । इन्द्र से, भगवान के ' छुफोमल केश, क्षीर-सागर में क्षेपण किये/और जब जन-समूह का कोलाइल शान्त हुआ, तब भगवांन विमलनाथ जे, सिद्ध भगवान को नमस्कार करके, छट के तप मे, माघ शुक्ला के दिन, एक हजार राजाधो के साथ सयम स्वीकार किया । सयम स्वीकारते ही, भगवान फो मन पयय ज्ञान हुआ । ' घरित्र स्वीकार फरके भगवान, कम्पिलपुर से अन्यत्र विद्दार कर गये | दूसरे दिन घान्यकूठ नगर में, जय राजा के यहाँ पवि- चान्न से भगवान का पारणा हुश्रा, जदं पच दिव्य प्रकट हुवे । सयम पालन करते हुए और अनेक अभिम्रह घारण करते हुए, भगयान, निश्पृद्द होकर जन-पद्‌ में विचरने लगे । दो मास तक, भगवान, द्यस्य अवस्था में विचरते रहे और फिर कम्पिलपुर के उ्ती उद्यान में पधारे। वहाँ, सगवान ने जम्बू युक्ष के नीचे क्षपक श्रेणी में आरूद हो, ऋमश मोहकर्म की प्रक्रतियों को सपायों 'और फिर शेष घाविक कर्म नष्ट फर, केवल ज्ञान प्राप्त किया । मगवान विमलनाथ फो केवलज्ञान हुआ है, यद्द जान इन्द्र ओर देवता, सपरिवार, फेवलज्ञानमहोत्सव करने फे लिए उप- स्थित हुए । उन्होंने केपलज्ञानमद्दोत्सप किया। समवशरण की रचना हुई । द्वादश प्रकार की परिषद्‌ एकत्रित हुई | भगवान




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now