धातुओं की कहानी | Dhatuo Ki Kahani

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Dhatuo Ki Kahani by धर्मेन्द्र कुमार - Dharmendra Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1 में इस प्रकार बढ़ी कार्बन की, मात्रा पहले बहुत গ্লিঘলিল और ग्रनिश्चित रही होगी । पर्याप्त कार्बन होने पर इस्पात से बनी तलवार, छुरे और अन्य ओऔजारों के गुण उन दिनों में बहुत आश्चयंजनक और श्रेष्ठ माने गये होंगे । गरम इस्पात को पानी में बुकानें पर उसकी शक्ति और कठोरता में बहुत वृद्धि हो जाती है । इस्पात के गुणों की जानकारी और तापोपचारित्‌ होकर शक्ति श्रीर कठोरता में परिवृद्धि का रहस्य पता लगने के बाद उसका उत्पादन बढ़ाने के प्रयत्न किये गये । यह ऐसा उपयोगी धातुमेल था जो सब प्रकार की चीजें बनाने के काम में लाया जा सकता था। सेनाओं के अ्रस्न-शत्र बनाने में इस्पीत का उपयोग बढ़ा और जो धातु एक समय स्वर्शिक मानी जाती थी वहं मनुध्य-समाज के लिए सर्वाधिक उपयोगी सिद्ध हुई । हम यह पहले कह चुके हैं कि स्वर्ण और रजत अपनी ` अनुपम आभा झोर सुन्दरता के कारण आभूषण इत्यादि बनाने के काम में लाये गये और बहुलता न होने के कारण धीरे-धीरे बहुमूल्य होते गये । अधिक माँग और कम मात्रा में उपलब्ध होने के कारण उन्हें हम दो वर्गों में रख सकते हैं | सभ्यता के विकास में इनका शअ्रत्यत्त महत्वपूर्ण योगदान है : (१) सभी धालुश्रों के कुद गुण एक दूसरे के समान होते ই । इस कारण स्वाभाविक है कि ऐसा प्रयत्न किया जाये जिससे भ्रधिक विपुल और कम मूल्य वाली धातुएँ, जैसे लोह वि्रिल और बहुमूल्य धातु स्वर्ण में बदली जा सकें । इस दिशा में असंख्य अ्रनवरत प्रयोग किये गये, पारस पत्थर की मान्यता ২ $ঠ2 °




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