विध्यतिरिक्त चतुर्विध वेदवाक्यों का मीमांसाशास्त्र सम्मत स्वरुप | Vidhyatirikt Chaturvidha Vedvakyon Ka MeemansaShastra Sammat Swarup
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
50 MB
कुल पष्ठ :
280
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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न | ৃ ^ :
क्या दे | जितते इत्त विवारशा स्त की तर्वरूपता नलद ভ্রীনলী 3 । यस्तकेणा-
उनन्धत्ते त धर्म वेद नेतरः * दस मतुस्मृति मेँ उक्त वाक्य में भी त्क॑ शब्द ते
ট্নিনাঁয গননা मोमाता वो प्राद्य ३ ।
मीमाभादर्रीन के जिये “वाक्यशा स्तर शब्द भी व्यवदूत सोता ই |
पूवमीमाशा वस्तुतः वेद के वाक्यार्थीीक्वार अर्य वाली र क्योकि येद ॐ
वाक्यार्थं निर्णय में इतका पर्भाश्िक उपयोग वै । यथा-*अगिग्नरोत्रं जुहो ति-यह
পায় कर्म के स्वरूप का व्याज्यान करने के कारण कर्मा त्पत्ता विधिवाक्य ३,
ইলা अर्य निर्धारण न तो वैयाकरणो भारा किया আঁ পলা था,और न दी
तर्कदन्न नेयापिय्की द्वारा' सम्भव था । इसतीलिये दाशीनिक क्षेत्र में क्द्वा क्यप माण-
पृरपरणः* सा का व्यवदर किया जाता रहा है। यहाँ *पद शब्द
के धारा प्रवृत्ति प्रत्यय व्माग भरा उचित शब्दो. नक्वनपरक मुभित्रय धाद
जनिर्मि व्याकरणशास्त्रे का द्रण किय गया है, वाक्य शब्द লীলা*লা ক লিউ
प्रकत, इवा दे, ओर “प्रमाण” शब्द से तकंशा सत्र आंभाीदित हुआ है । याज्ञवल्क्य
स्मृति मेँ ज्ञान एप धर्म के मूलस्वहूप चतुर्दशाफ्धाओं7 में मीमीताशा सत्र को गणना
की गयौ ढै । यही कारण है कि मौमाधाशा सत्र का वाक्याथ निर्णय प्रसका
|». শ্নীনা্না বক प्तकंः तथवेदन्रमृदभव: ,
नीऽतौ वेदो नमाप्रप्त काण्ठाद्दिनच्णा म्द । ^ | न्याय वाणलाणटी०प०-६।
2~ “पुराणन्यायमोमा ता धर्मा स्वाक्हाी मी भरता:
वेदाः स्थानानि सिद्याना! धर्मक््य च चपुर्दरा 1
(यात्र0 स्मृति आचाराध्याय,रलोक-5
ॐ “प्रवीत्तवानिवृील्तवाँ नित्येन নুলকল নাঃ
शासनात् शंतनाच्चेव शा्त्रीमल्यभिधीयते ।
(शलो०वा ८शब्दपरिच्छेद | रलोौ 0-4 |
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