परिचित प्रश्न नई समीक्षा | Parichit Prashn Nai Samiksha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
29 MB
कुल पष्ठ :
440
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तुलसीदास की समन्वयं साधना (५
सामाजिक-धामिक प्रवृत्तियों के लोगों के सम्पकं मे भ्राए । उन्होने
गार्हस्थ्य की चरम भ्रासक्ति का भ्रनूभव भी किया भ्रौर उसी शक्ति का
ऊध्वे साधना में उपयोग भी हुझा । साक्षात अनुभवों के साथ अपार
ग्रन्थज-ज्ञान ने भी उनके हृष्टिकोश को व्यापक बनाया । समन्वय साधना
के प्रेरणा तथा निर्मायकं पक्ष पर प्रकाश डालने के पश्चात श्रः हम
इसके स्वरूप का विश्लेषण करेंगे ।
१. विभिन्न ग्रन्थों का सार-विचार
तुलसीदास का 'मानस' केवल कवि-प्रेरणा का परिणाम नहीं, वरलू
वह् एक महाकवि के गम्भीर अरध्ययन-चितन का सुफल है। तुलसी ने
'मानस' का ताना पुराण निगमागम सम्मतं' होना स्वीकार किया है।
वाल्मीकि रामायण, महारामायण, आध्यात्मरामायण, संस्कृत के
नाटको--्रसन्नराघव' हनुमन्नाटक' “रघुवंश श्रादि का ही नही, प्राकृत
अपभ्रन्श के विपुल राम-साहित्य--विशेषरूप से स्वयं भूदेव (७९० ई०)
की रामायण--का अवगाहन कर के तुलसी ने श्रपने समय के
उपयुक्त मौलिक प्रतिभा का उपयोग करते हुए 'मानस' की रचना की ।
अतैव तुलसीदास राम-कथा की एक लम्बी विराट परम्परा के उज्ज्वल
रत्न बन कर उपस्थित हुए । उन्होंने इस परम्परा के पृर्ववर्ती जाज्वल्यमान'
चारणों की भी वन्दना की है---
ब्यास आदि कावे पुगव नानता।
जिन्ह सादर हरिचरित बखाना ॥
चरन कमल बंद तिन्ह केरे।
पुरवह सकल मनोरथ मेरे !।
कलि के कचिन्ह् करं परनामा ।
[অন্ত बरने रघुपति-गुन भ्रामा ॥
जे प्राकृत केवि परम सयाने।
भाषा जिन्ह॒ हरिचरित खाने ॥
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